Book Title: Mahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Author(s): Divyagunashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 273
________________ २५८ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन विश्व का प्राचीन भारत देश सिन्धु धोता चरण हिमका या किरीट सुवेशखुल गया इतिहास लो प्राचीन *** उपर्युक्त अछन्दस छन्द की रचना है । न चारों पंक्ति में छन्द की मात्रा मिलती है। एक चरण बड़ा है तो दूसरा चरण छोटा है। ऐसा होने पर भी कवि की काव्यकौशलता के कारण भावों की गतिमयता में बाधा नहीं पहुँची है। अंत में इतना ही कहूँगी कि कवियों ने संभवतः शास्त्रीय छंदों का प्रयोग किया है । जहाँ वह संभव नहीं हुआ वहाँ पर भी काव्य की गति, प्रवाह में कोई स्खलन नहीं आया । काव्य की गति बराबर बनी रही है । यह भी कवि का काव्य कौशलता ही है । यद्यपि छंद स्खलन है पर प्रवाहमहत्ता उसका सौंदर्य भी है। ऐसे वजनी प्रवाहमय छंद के अनेक उदाहरण प्रबंध काव्यों में दृष्टव्य है । सभी प्रबंध काव्यों के अध्ययन के पश्चात् इतना कहूँगी कि प्रायः सभी कवियों भावों के अनुरुप भाषा के साथ शास्त्रीय छंदो का या छन्दबद्ध (वजनी) छंदों का प्रयोग किया है । Jain Education International ***** “तीर्थंकर महावीर” : कवि गुप्तजी, सर्ग - १, पृ. ४ १ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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