Book Title: Mahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Author(s): Divyagunashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 272
________________ २५७ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन मैं चिरसे आश लगाये हूँ अतएव मुझे न निराश करी। परिणय की स्वीकृति दे बेटा। पूरी मेरी अभिलाष करो॥ *** भारत का कण कण बोल उठा, यह जन्म मुक्तिका उजियाला। जिसमें हिम की शीतलता हो, ऐसी भी होती है ज्वाला॥ जो पशु बल अंकुश अजेय अवतीर्ण हुआ वह बलशाली। रीता न रहा कोई दीपक, रीति न रही कोई थाली॥२ *** यह छन्द समान सवैया के निकट है, लेकिन समान सवैया नहीं है, इसीलिए हम इसको “समान सवैया' के वजन का छन्द कहेंगे। महावीर ने उस देवी को संयम देकर, मोक्ष पन्थ की उस पथिका को राह दिखाकर, नारी के गौरव को था अक्षुण्ण बनाया, चन्दनबाला को सतियों की मुख्य बनाकर * ** यह छन्द रोला के निकटवर्ती है, किन्तु शास्त्रीय नियमानुसार यह रोला छन्द नहीं है, क्योंकि एक चरण में न मात्रा का मिलन हैं और न नियमानुसार विराम चिह्न है। या शतदल हो गया बन्द ___ पंखुड़ियाँ सोईवातायन से चलकर आया पवन हठीला -४ *** I arrin x “परमज्योति महावीर" : कवि सुधेशजी, सर्ग-१०, पृ.२७७ “वीरायण" : कवि मित्रजी, “जन्मज्योति", सर्ग-४, पृ.९७ "श्रमण भगवान महावीर" : कवि योधेयजी, अष्टम् सोपान, पृ.३०५ "तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी, सर्ग-१, पृ.११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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