Book Title: Mahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Author(s): Divyagunashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 261
________________ २४६ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन बिना वृक्ष के बैल अभागिन, ऐसी ही स्थिति मेरी, जैसे सलिल बिना सरिता हो, शुष्क रेत समय है चेरी है।' ** * उदाहरण अलंकारः पिंजड़े में हो बंद पक्षिणी, व्यथा नहीं कह पाती है। चुप चुप रोती है उरमें ही, बिना तेल के ज्यों बाती है । ** * चन्द्रमा से ज्यों सुधाकर स्त्राव तैरती हो ज्यों लहर पर नाव कान से सुनकर कि वचनामृत। हुआ गौतम का सफल वह व्रत -३ *** वास्तव में महाकाव्यों में अनेक अलंकारों का अत्यन्त काव्योचित प्रयोग हुआ है। परम्परागत अलंकार कौशल के अतिरिक्त कविवरों ने काव्यों में अपनी भावमयी कल्पना से सुषमा के अनेक नये सुमन उपजाये हैं। कहीं-कहीं शब्दों की कल्पना में अर्थ और मृदुता का इतना विस्तार भरा है कि परिभाषाएँ और कल्पनाएँ काव्यमय हो गई प्रबन्धों में छन्द दर्शन प्रस्तुत भगवान महावीर महाकाव्यों में कवियों ने छन्दों का सुंदर ढंग से निरुपण किया है। उन्होने काव्यों में वर्णिक और मात्रिक दोनों ही प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया गया है। कवि अनूप शर्मा कृत "वर्धमान काव्य' संपूर्ण “वंशस्थ” छन्द में वर्णित है। कहीं-कहीं मालिनी, द्रुतविलम्बित और शार्दूलविक्रीडित छन्द का भी निर्वाह हुआ है। कवि ने भगवान महावीर की विविध घटनाओं का चित्रण “वंशस्थ" छन्द में प्रस्तुत किया है। त्रिशला के रुप सौन्दर्य का मनोहारि चित्रण कवि ने काव्य में खींचा है। “वंशस्थ' छन्द में जगण, तगण, जगन और रगण-इस प्रकार प्रत्येक १२ वर्गों का होता है - "भगवान महावीर" : कवि शर्माजी, "यशोदा विरह" : सर्ग-१५, पृ.१६४ २. वही ३. “तीर्थंकर महावीर" कवि गुप्तजी, सर्ग-६, पृ.२७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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