Book Title: Mahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Author(s): Divyagunashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 266
________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन २५१ छप्पय: छप्पय में कुल छह चरण होते हैं। उनमें पहले चार रोला के २४-२४ मात्राओं के (११-१३ की यतिसे) और अन्तिम दो उल्लाल के २८-२८ (१५-१३ पर यति से) मात्राओं या २६-२६ (१३-१३ परयति से) मात्राओं भी होती हैं। जा पूरव अवतारमास, षट तै नव लौं वर, बरसे रत्न अमोल, सुभग छविवन्त पिता घर । देखसु अतिशय रुप, हेमगिरि करयौन्वहेन सुर, नृपतिभयौ नहिं सोई, किए तब सहस अक्ष उर। वर्द्धमान श्रियवर्द्ध अति, मान कीर्ति जगमें सही, मान वर्द्ध हिरदै नहीं, सुवर्द्वमान वासव कही।' * ** कवि की लघुता का वर्णनः सारस्वत नहि पठ्यौ, काव्य पिंगल नहि सिख्यौ। तरक छन्द व्याकरण, अमरकोष हि नहि दिख्यौ । अल्पवृद्धि थिर नांहि, भक्तिवश भाव बढायौ द्रव। जिन मत के अनुसार, ग्रन्थ को पाल लगयौ। बुद्धिवन्त सज्जन विनय, हास्य भाव मत कोई करो। तुकहीन छन्द जो अमिल जौ, तो तो विचार अक्षरों धरौं॥२ *** सोरठाः सोरठा के विषम (पहले-तीसरे) चरणों में ११ और सम (दूसरे चौथे) चरणों में १३ अर्थात् प्रत्येक दल में २४ मात्राएँ होती हैं इसके पहले-तीसरे चरणों में तुक मिलती है। किंचित तप नहिं कीन, दान सुपात्रै न दियौ। जिन पूजा कर हीन, अशुभ कर्म पोतै परै ।। ३ “वर्द्धमान पुराण' : कवि नवलशाह, प्रथम अधिकार, श्लो.४, पृ.१ वही, षोडश अधिकार, पृ.२८३ वही, तृतीय अधिकार, पद सं. १५१, पृ.२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292