Book Title: Mahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Author(s): Divyagunashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 250
________________ २३५ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन सरोज-सा वस्त्र, सु-नेत्र मीन-से सिवार-से केश, सुकंठ कंबु-सा उरोज ज्यों कोक, सुनाभि भोरं-सी तरंगिता थी त्रिशला-तरंगिणी॥ कवि ने काव्य में भगवान महावीर के अलौकिक प्रभाव का सुंदर चित्रण रुपक द्वारा अंकित किया है हिंसक सब हिंसा विस्मृत कर, प्रेम-सुधा से पूरित से। गले मिले सब प्रतिद्वन्दी भी, दिव्य प्रेम बल से जित से॥२ * ** यशोदा का विरह वर्णन रुपक अलंकार से कवि ने काव्य में अलंकृत किया है मेरी साँस साँस में तुम हो, हर धड़कन में बसे हुये। तन की वीणा प्रणयनाद में, तार तार में कसे हुये ॥३ *** चंदनबाला के केशराशी की सौन्दर्यता वर्णन कवि ने रुपक अलंकार से किया imo केश गिर रहे थे जब भूपर, लगता था नागिन लहरें। श्याम चिकुट की भव्य पताका, रुप भवन पर ज्यों फहरे ॥४ कवि ने रुपक द्वारा जनता को उद्बोधन दिया है कि धर्म का तरु ज्ञान की रस्सी। तोड़ दो अभिमान की रस्सी॥ *** मित्रो ! मन की बाढ़ से, बड़ी न कोई बाढ़ I arrin x “वर्द्धमान' : कवि अनूप शर्मा, सर्ग-१, पद सं. ८१, पृ.५५ "भगवान महावीर" : कवि शर्माजी, “दिव्य प्रेरणा", सर्ग-१, पृ.१६ वही, “यशोदा विरह", सर्ग-१५, पृ.१६३ वही, "चंदना उद्धार"सर्ग-१२, पृ.१४१ “वीरायण' : कवि मित्रजी, “बालोत्पल", सर्ग-५, पृ.११२ ; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292