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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
सरोज-सा वस्त्र, सु-नेत्र मीन-से सिवार-से केश, सुकंठ कंबु-सा उरोज ज्यों कोक, सुनाभि भोरं-सी
तरंगिता थी त्रिशला-तरंगिणी॥ कवि ने काव्य में भगवान महावीर के अलौकिक प्रभाव का सुंदर चित्रण रुपक द्वारा अंकित किया है
हिंसक सब हिंसा विस्मृत कर, प्रेम-सुधा से पूरित से। गले मिले सब प्रतिद्वन्दी भी, दिव्य प्रेम बल से जित से॥२
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यशोदा का विरह वर्णन रुपक अलंकार से कवि ने काव्य में अलंकृत किया है
मेरी साँस साँस में तुम हो, हर धड़कन में बसे हुये। तन की वीणा प्रणयनाद में, तार तार में कसे हुये ॥३
*** चंदनबाला के केशराशी की सौन्दर्यता वर्णन कवि ने रुपक अलंकार से किया
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केश गिर रहे थे जब भूपर, लगता था नागिन लहरें।
श्याम चिकुट की भव्य पताका, रुप भवन पर ज्यों फहरे ॥४ कवि ने रुपक द्वारा जनता को उद्बोधन दिया है कि
धर्म का तरु ज्ञान की रस्सी। तोड़ दो अभिमान की रस्सी॥
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मित्रो ! मन की बाढ़ से, बड़ी न कोई बाढ़
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“वर्द्धमान' : कवि अनूप शर्मा, सर्ग-१, पद सं. ८१, पृ.५५ "भगवान महावीर" : कवि शर्माजी, “दिव्य प्रेरणा", सर्ग-१, पृ.१६ वही, “यशोदा विरह", सर्ग-१५, पृ.१६३ वही, "चंदना उद्धार"सर्ग-१२, पृ.१४१ “वीरायण' : कवि मित्रजी, “बालोत्पल", सर्ग-५, पृ.११२
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