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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन तुमने सांसारिक भोग छोड़ अहि-फण समान'
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मालोपमा द्वारा कविने चंदनाजी के रुप सौन्दर्य का वर्णन किया है
नेत्र थे जैसे खिले कमल
हेम किरणी से थे चंचल कवि ने इस पद में उपमा, अन्त्यानुप्राश और अतिशयोक्ति अलंकार द्वारा भावों को सुंदर भर दिया है
सिसिकियाँ हुई एक क्षण बन्द गीत के रूक जाते जब छन्द नयन के ऐसे मुक्ता कोष धरा पर बिखरे जैसे ओस
*** कविने त्रिशलानंदन महावीर काव्य में उपमा द्वारा त्रिशला के सौन्दर्य का अद्वितीय चित्रण किया है -
मस्तक के केश भंवर से थे दाडिम सी दंत पंक्ति सारी, थे नैन कुरंग समान युगल कटि थी कृष केहरी उनहारी, थे आंगोपांग सुडौल उपमा वरणी नहीं जाती थी जिनके दर्शन कर देवी क्या स्वयंमेव शची शर्मा शर्माती थी।
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रुपक अलंकारः
कवियों ने काव्य में रुपकों का अद्भूत चित्रण चित्रित किया है। त्रिशला के वर्णन में तरंगिनी (नदी)का रुपक देखिए -
"तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी, सर्ग-३, पृ.१३० वही, सर्ग-४, पृ.१५६ वही, सर्ग-७, पृ.३१० "त्रिशला नन्दन महावीर" कवि हजारीलाल, पृ.२९
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