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________________ २३६ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन माँझी मन की नाव का, पानी जल्दी काढ़॥ *** राजा सिद्धार्थ रानी त्रिशला देवी से अपनी तुलना की बात करते हुए कहते है कि तुम चन्द्र मुखी, मैं छवि चकोर । तुम सजल घटा, में मुग्ध मोर ॥२ *** पति के विरक्त के भाव जानकर पत्नी यशोदा अपने भावों को व्यक्त करती है उसी का रुपक के द्वारा कवि ने काव्य में दर्शनीय चित्रण किया है तुम गगन और मैं धरती हूँ, बरसों तो प्यास बुझे मेरी। प्यासी प्रतीक्षा में बैठी, क्यों करते आने में देरी ? ३ *** कविने एक पद में चंदनबाला की केश राशी का वर्णन करते हुए उपमा, उत्प्रेक्षा और रुपक इन तीनों का संगम अनोखा बन पड़ा है - चंदनबाला की जंघो तक चमकीली काली केश-राशी थी श्याम-घटा-सी फैल रही, ज्यों चन्द्रवदन पर मेघराशी। *** यहाँ कवि ने रुपक, उपमा आदि अलंकार द्वारा अहिंसा की पराकाष्ठा का अनुपम चित्रण किया है - संवेग महागज अति विसाल बलशाली वह सहज हुए आरूढ़ चढे ज्यों लाली, "वीरायण" : कवि मित्रजी, "प्यास और अंधेरा", सर्ग-७, पृ.१७१ “भगवान महावीर" : कवि शर्माजी, “शैशवलीला', सर्ग-४, पृ.४४ “वीरायण" : कवि मित्रजी, “विरक्ति", सर्ग-९, पृ.२४८ "श्रमण भगवान महावीर" : कवि योधेयजी, "चंदनबाला", सोपान-७, पृ.२६९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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