________________
२२१
हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
मुख विकसत इन्दीवर जासा, ताल मृदंग गीत रस रास। इहि प्रकार शोभित गजराज, तापर इन्द्र लियै सब साज।
***
शची सहित अति पुण्य उपाय, बहु आभरण अंग परिहाय। वर्धमान जिन केवलज्ञान, करन महोत्सव चलै महान् ॥१
***
वे दशों दिशा के लोकपाल अनुगामी ये महावीर अब आज उन्हीं के स्वामी सुरराग सँग थी सात सैन्य बलशाली
सेना पदाति गज रथ तुरंग गति ढाली- २ समवशरण रचनाः
देवों द्वारा समवशरण रचना का दृश्य तथा उनके उपर बिराजित भगवान का सुंदर चित्र देखिए -
समोवशरण रचियो जुअपार, को बुधवंत लहै कहि पार। अवसर पाय धर्म मन ध्यान, किमपि लिखौं आनंद उर आना ।। कोश अढाई उर्ध्व अकास, पृथ्वी तैं जहं लौ प्रभुवास। इन्द्रानील मणिमय पीठिका, तीन लोक की उपमानिका॥२
***
निर्वाणोत्सवः
कवि ने देवगण, इन्द्र-इन्द्राणी द्वारा पावापुरी में निर्वाणोत्सव का मनोरम चित्रण काव्य में प्रस्तुत किया है। चारों ओर सुगंध फैलना, पुष्पों का खिलना, जन-मानस, पशु-पक्षी आदि में आनंद की लहर उठना आदि भावों के अनुकूल अद्वितीय चित्र देखिए -
"वर्धमान पुराण" : कवि नवलशाह, एकादश अधिकार, पद सं. ३२-३३, पृ.१५० "तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी, सर्ग-५, पृ.१७८ “वर्धमान पुराण": कवि नवलशाह, एकादश अधिकार, पद सं. ७६-७७, पृ.१५३
३.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org