Book Title: Mahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Author(s): Divyagunashreeji
Publisher: Vichakshan Prakashan Trust

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Page 239
________________ २२४ आग बबूला होना : हृदय में फूलाना : बिजली की तरह कूदना : हड्डी हड्डी तिड़कना : हौले हौले पाँव बढ़ाना : २. ३. ४. हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन रंग बिरंगे जगमगा करतेरत्नदीप खिलखिला उठे । ' १ वे कभी भागते इधर उधर, वे कभी दौडते यहाँ वहाँ । जाती थी युग युग की निधियाँ बालक जाते थे जहाँ जहाँ ॥ बिजली की तरह उछलते थे, बिजली की तरह कूदते थे । चुपके से एक दूसरे के, छिप छिपकर नयन मूँदते थे । ३ *** अतएव हुवा अब पहले सेभी बढकर आग बबूला था । मैं अभी पछाड़े देता हूँ. यह सोच हृदय में फूला था ।। २ *** कण कण जलता और पिधलता काया तिल तिल चिटक रही। अंग अंग जैसे कटत हों, हड्डी, हड्डी तिड़क रही । ४ तरुणाई ने, हौले हौले पाँव बढ़ाए, सिमट रहा था, शैशव चंचल 'श्रमण भगवान महावीर” : कवि योधेयजी, "माता-पिता की इच्छापूर्ति", तृतीय सोपान, पृ. १०४ "परमज्योति महावीर": कवि सुधेशजी, सर्ग ९, पृ. २५४ " वीरायण" : कवि मित्रजी, "बालोत्पल", सर्ग - ५, पृ. १२५ 'श्रमण भगवान महावीर” : कवि योधेयजी, “विदाकी बेला” सोपान - ३, पृ. १२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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