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आग बबूला होना : हृदय में फूलाना :
बिजली की तरह कूदना :
हड्डी हड्डी तिड़कना :
हौले हौले पाँव बढ़ाना :
२.
३.
४.
हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
रंग बिरंगे जगमगा करतेरत्नदीप खिलखिला उठे । '
१
वे कभी भागते इधर उधर, वे कभी दौडते यहाँ वहाँ । जाती थी युग युग की निधियाँ बालक जाते थे जहाँ जहाँ ॥ बिजली की तरह उछलते थे, बिजली की तरह कूदते थे । चुपके से एक दूसरे के, छिप छिपकर नयन मूँदते थे ।
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अतएव हुवा अब पहले सेभी बढकर आग बबूला था । मैं अभी पछाड़े देता हूँ.
यह सोच हृदय में फूला था ।।
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कण कण जलता और पिधलता काया तिल तिल चिटक रही। अंग अंग जैसे कटत हों, हड्डी, हड्डी तिड़क रही । ४
तरुणाई ने, हौले हौले पाँव बढ़ाए, सिमट रहा था, शैशव चंचल
'श्रमण भगवान महावीर” : कवि योधेयजी, "माता-पिता की इच्छापूर्ति", तृतीय सोपान, पृ. १०४
"परमज्योति महावीर": कवि सुधेशजी, सर्ग ९, पृ. २५४
" वीरायण" : कवि मित्रजी, "बालोत्पल", सर्ग - ५, पृ. १२५
'श्रमण भगवान महावीर” : कवि योधेयजी, “विदाकी बेला” सोपान - ३, पृ. १२६
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