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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
चला सूर्य, अम्बर की चौटी छूनेपसर गया आभा का अंचल।'
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राजा बने फकीरः
समय बड़ा बलवान है, राजा बने फकीर । नारायणं वन वन फिरे, भटके पाण्डव वीर ।। २
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अणु अणु में उजियाला होना:
जैसे सूर्योदय होते ही, तम की विभीषिका फट जाती। जैसे पुण्योदय होते ही, दुःखों की खाई फट जाती ॥ ऐसे ही जब विभु आयेगा, अणु अणुमें उजियाला होगा। वह वीरेश्वर विश्वास रुप, जीवन देने वाला होगा॥३
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जहरीली नागिनः
जहरीली नागिन सी दासी, भरी क्रोध में पुंकारी। गोशाले को चली मारने, भूल गई सुध-बुध सारी।
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साधु का घर कहीं न होता रमता जैसे पानी जाँत-पाँत मजहब की काली गहरी रेख मिटानी -५
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"श्रमण भगवान महावीर" : कवि योधेयजी, “तरुणावस्था", सोपान-३. पृ. ९२ “वीरायण" : कवि मित्रजी, “पृथ्वी पीड़ा", सर्ग-२, पृ.६० वही, पृ.६६ "श्रमण भगवान महावीर" : कवि योधेयजी, सप्तम् सोपान पृ.२४४ "तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी, सर्ग-३, पृ.७०
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