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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
वे अन्तर्राष्ट्रीयता की पोषक हैं । यही कारण के विशाल देश में धर्म, भाषा, रहन-सहन, आस्थायें अलग-अलग होते हुए भी सांस्कृतिक, सामाजिक, एकता में पूरा देश भावात्मक रुप से एक है । भिन्नत्व में अभिन्नता इस की विशेषता है ।
पाश्चात्य द्रष्टिकोण:
पश्चिमी विद्वानोने राष्ट्रीय भावनाओं का सम्बन्ध मनोविज्ञान से स्थापित किया है । जे. हॉलेन्ड रोज ने राष्ट्रीयता का अन्तः चेतना से सम्बन्ध स्थापित करते हुए राष्ट्रीयता अनुभूति का विषय माना है।' इस व्याख्या द्वारा इस भावना को महत्व दिया गया है कि व्यक्ति जब यह भावना अपने अन्तर में स्थापित कर लेता है कि यह मेरा देश है तब वह उसके रक्षण एवं उन्नति के लिए सदैव अग्रसर रहता है । जिस राष्ट्र में यह भावना जितनी बलवती होगी, वह राष्ट्र उतना ही बलवान होगा।
गिल क्राइस्ट, गेटेल, जैसे विद्वानों में भी मनोवैज्ञानिक तथ्य को स्वीकार करते हु भाषा, धर्म, ऐतिहासिक परम्पराओं एवं साहचर्य की भावनाओं को राष्ट्रीयता के सन्दर्भ में स्वीकार किया है ।
पश्चिमी द्रष्टिकोण से विचार करने पर राष्ट्रीयता के पोषक तत्वों में अखंड देश, समान भाषा आदि तत्वों का महत्व ही स्वीकृत दिखाई देता हैं। पश्चिमी व्याख्याओं में मानसिक भावनाओं के ऐक्य पर विशेष बल दिया गया है।
राजनीतिक एकता
अन्य तत्वों में कहीं कुछ मतभेद हो सकता है पर राजनीतिक एकता में कोई मतभेद नहीं हो सकता । यही सबसे बडा एकता का पोषकतत्व हैं। राजनीतिक एकता राष्ट्रीयता का सर्वाधिक सशक्त पहलू हैं । कोई भी व्यक्ति पराजित बनकर नहीं रहना चाहता। देश को स्वतंत्र बनाने की आकांक्षा देशवासियों में और विशेषकर वीरों को प्रेरणा प्रदान करती है। प्राचीन भारत में बहुत से छोटे-बड़े राज्य विद्यमान थे. पर साथ ही यह बात भी सत्य है कि बहुत प्राचीन समय से इस देश में यह विचार विद्यमान था, कि यह विशाल देश एक चक्रवर्ती साम्राज्य का उपयुक्त क्षेत्र है, और इसमें एक ही राजनीतिक शक्ति का शासन होना चाहिए। आचार्य चाणक्य ने कितने सुन्दर रुप में यह प्रतिपादित किया था, कि हिमालय से समुद्र- पर्यन्त जो हजार योजन विस्तृर्ण प्रदेश है, उस चक्रवर्ती
१.
Nationality History : Holland; p. 147
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