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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन इन भवों का वर्णन है।
चतुर्थ अधिकार में सिंह पर्याय और चारण मुनियों द्वारा संबोधन करने पर सम्यक्त्व की प्राप्ति, फिर सौधर्म स्वर्ग में देव पर्याय, राजकुमार कनकोज्वल, सातवें स्वर्ग में देव जन्म, राजकुमार हरिषेण, दसवें स्वर्ग में देव पर्याय का वर्णन मिलता है।
पाँचवें अधिकार में प्रियमित्र चक्रवर्ती के भव का तथा बारहवें स्वर्ग में देव पद की प्राप्ति का वर्णन है।
छठवें अधिकार में राजा नन्द के भव में तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध तथा सोलहवें स्वर्ग में अच्युतेन्द्र पद की प्राप्ति का वर्णन है।
सप्तम अधिकार में महाराजा सिद्धार्थ के महलों में कुबेर द्वारा तीर्थंकर जन्म से पूर्व रत्नों की वर्षा, माता द्वारा सोलह स्वप्नों का दर्शन, महावीर तीर्थंकर का गर्भावतरण महोत्सव का वर्णन हैरत्नो की वर्षाः
देहसुपात्रहि उत्तम दान, रत्नवृष्टि सुर करहिं निदान । तिनको देखि मध्य नर कोई, दान देने में तत्पर होई॥
*** कीनो कुबेर पुरमें प्रकाश, उन रचे हेम उँचे अवास । जिनराज धर्म आगमन जान, इन कियों महोत्सव सुक्खा खान ॥२
*** स्वप्न दर्शनः
एक समय रानी जिनधाम, कोमल सेंज करे विश्राम । निशा पाछिले पहर निदान, सोवे सुख जुत निंद प्रमान ॥ .
*** गर्भावतरण महोत्सवः
कबहू बन क्रीडा को जाय, गावें मधुर वचन समुदाय। कब हूँ नृत्य कर सुख पाय, वाद्य कथा बहु कहै बनाय ।।
“वर्धमान पुराण" : कवि नवलशाह, सप्तम् अधिकार, श्लो. ९८, पृ.६९ वही, श्लो. १२८, पृ.७१ वही, श्लो. १३५, पृ.७२
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