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धन नही रखेगे। इस प्रकार सीमा बाध लेने से हमारी लालसा कम होती जायेगी और हम एक सीमा तक ही लौकिक कार्य, व्यापार आदि करेंगे और अपना बचा हुआ समय व धन दूसरों का उपकार करने और अपनी आत्मा की उन्नति मे लगा सकेगे। यही नही, इसके फलस्वरूप, उपलब्ध वस्तुओ का बटवारा भी अधिक से अधिक व्यक्तियों मे हो सकेगा। तात्पर्य यह है कि यदि भगवान महावीर के इस उपदेश का पालन किया जाये तो आज जो वर्गसघर्ष हो रहा है वह स्वयमेव ही दूर हो जायेगा।
इस विषय पर हम एक अन्य दृष्टिकोण से भी विचार कर सकते है । ससार मे किसी भी व्यक्ति की तृष्णाओ और इच्छाओ की कोई सीमा नहीं है। हमारी एक इच्छा पूरी हो नही पाती कि अन्य अनेको नई इच्छाएँ आकर खड़ी हो जाती हैं। यही दशा तृष्णाओ की भी है। यदि आज हमारे पास एक लाख रुपया है तो हम दस लाख पाने की तृष्णा करने लगते हैं, और जब दस लाख हो जाता है तो एक करोड पाने की तृष्णा हो जाती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि किसी भी व्यक्ति की तृष्णाओ व इच्छाओ का कोई अन्त नहीं है। अपनी तृष्णाओ व इच्छाओ की पूर्ति के लिये हम तरह-तरह के अन्याय व अत्याचार करते हैं और अनुचित साधनो का प्रयोग करते है। और ऐसा करते समय हम इस बात की तनिक भी चिन्ता नहीं करते कि हमारे इन कार्यों से अन्य व्यक्तियों तथा पशु-पक्षियो को कितना कष्ट हो रहा है। विडम्बना तो यह है कि यह सब अन्याय व अत्याचार करने के पश्चात् भी यह निश्चित नहीं होता कि हमारी सभी तृष्णाएँ व इच्छाएं पूरी हो ही जायेगी। इन अन्यायो व अनुचित साधनो के फलस्वरूप व्यक्तियो मे