Book Title: Mahavir aur Unki Ahimsa
Author(s): Prem Radio and Electric Mart
Publisher: Prem Radio and Electric Mart

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Page 169
________________ मनुष्य जन्म की सार्थकता हम अनादि काल से विभिन्न योनियो मे शरीर धारण करते हुए सुख और दुख भोग रहे हैं । इन सुख व दुखा भोगने के लिये हमारे द्वारा पूर्व मे किये हुए अच्छे व बुरे कार्य ही उत्तरदायी है। ये अच्छे व बुरे कार्य हम अपने अनादिकालीन अज्ञान और हिंसा, राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ, मोह आदि की भावनाओ के कारण ही करते रहते है। यदि हमको सुख व दुख भोगने से छुटकारा पाकर, अनन्त और सच्चा सुख प्राप्त करना है तो हमको अपना अज्ञान तथा इन क्रोध, मान, माया, लोभ आदि की भावनाओ को छोड़ना पडेगा। मनुष्य योनि के अतिरिक्त पशुपक्षियो की योनियो मे न तो हम मे इतनी शक्ति होती है और न इतना ज्ञान व विवेक, कि हम अपना अच्छा व बुरा सोच व समझ सके । ससार मे लाखो योनियो मे केवल मनुष्य योनि ही ऐसी योनि है जब हम अपना भविष्य सुधारने और सच्चा सुख प्राप्त करने का प्रयत्न कर सकते हैं। इस मनुष्य जन्म मे भी अपनी भलाई की बात सुनने व जानने का अवसर कितने मनुष्यो को मिलता है ? यदि भलाई की बात सुनने का अवसर मिल भी जाये, तो उस बात को सुनने, समझने तथा उस पर आचरण करने का प्रयत्न कितने व्यक्ति करते है ? फिर इन प्रयल करने वालों मे भी कितने व्यक्तियो को इतनी सुविधा व साधन उपलब्ध

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