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एक बात और है, ये पशु-पक्षी तो दूसरों पर आक्रमण करने के लिए केवल अपने शारीरिक अगों का ही प्रयोग करते हैं, जो इनकी अपनी सुरक्षा के लिए इनको प्रकृति की देन हैं। परन्तु मनुष्य ने तो सामूहिक हत्या के लिये एक से एक बढ़ चढ़ कर घातक व मारक अस्त्र-शस्त्र बना लिये हैं, जिनसे वह क्षण भर मे ही सैकड़ों मील के क्षेत्रफल के प्रत्येक जीवित प्राणी की हत्या कर सकता है । वैज्ञानिको ने जो उपकरण मनुष्यों की सेवा व सुरक्षा के लिए बनाये थे, उन उपकरणों का प्रयोग भी मनुष्यों की ही हत्या करने के लिए किया जा रहा है। फिर बतलाइये ast हिंसक कौन हुआ
?
(४) कुछ व्यक्तियो की यह मान्यता है कि यदि कोई जीव भयंकर पीड़ा से छटपटा रहा हो तो उसका वध कर देना चाहिए, जिससे कि उसकी पीडा का अन्त हो जाये ।
परन्तु यह मान्यता ठीक नही है। धार्मिक दृष्टि तो यह कहती है कि किसी भी जीव को जो कोई भी कष्ट मिल रहा है वह उसके अपने द्वारा पूर्व मे किये हुए पापों के फलस्वरूप ही मिल रहा है। यहाँ पर मृत्यु हो जाने से उस जीव के पाप नष्ट नही हो जाते। अपने पापों का फल तो उसको भोगना ही पडेगा, इसलिए इस योनि मे मृत्यु हो जाने से उसके कष्ट समाप्त नही होगे । हमारा कर्तव्य तो यह है कि कष्ट पा रहे जीवो की सेवा सुश्रुषा करके उनको सुख व शान्ति पहुँचायें । हमारे प्रयत्नों से उन्हें सुख-शान्ति मिलती है या नहीं मिलती- यह हमारे वश में नहीं है । यदि हमारा कोई सम्बन्धी या अन्य कोई मनुष्य इस प्रकार पीडित हो तो क्या हम उसके साथ भी ऐसा ही व्यवहार करेंगे ?
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