Book Title: Mahavir aur Unki Ahimsa
Author(s): Prem Radio and Electric Mart
Publisher: Prem Radio and Electric Mart

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Page 148
________________ अधिकतर स्वाद लेने के लिये ही दिन भर कुछ-न-कुछ खाते रहते हैं। इसीलिये हम चाट, पकोडी, मिठाई आदि खाते रहते हैं और कोकाकोला, चाय, काफी आदि पीते रहते हैं । अनेको बार ऐसा होता है कि हमको भूख नही होती, फिर भी हम भोजन कर लेते हैं, क्योकि भोजन करने का समय जो होता है। हमारी आखो को सुन्दर लगे जौर हमारी जिह्वा को स्वादिष्ट लगे, इसलिये हम भोजन को विभिन्न प्रकार से विकृत कर देते हैं। यह सब करते हुए हम यह नही सोचते कि इस प्रकार के विकृत पदार्थ सेवन करने और बिना भूख ही सेवन करने से हमारे स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पडेगा? इसका स्वाभाविक परिणाम यही होता है कि हम अपना स्वास्थ्य खराब कर लेते है और फिर औषधियो के भरोसे ही अपना जीवन बिताते है । भोजन के सम्बन्ध में की गई इस प्रकार की अनियमितता के परिणामो को देखते हुए प्राकृतिक चिकित्सक इस निष्कर्ष पर पहुचे है कि ससार मे भोजन न मिलने (अर्थात् भुखमरी) से जितने व्यक्ति मरते हैं, उनसे सैकडो गुने अधिक व्यक्ति विकृत, अप्राकृतिक तथा आवश्यकता से अधिक भोजन के सेवन से मरते है। उनका यह भी कहना है कि दुर्घटनाओ को छोडकर कम-से-कम पचहत्तर प्रतिशत रोग पेट की खराबी के कारण से होते है और पेट की खराबी हमारे भोजन की गलत आदतो का ही परिणाम है। हम आपके सामने कुछ तथ्य रखते हैं .--- यदि हम समुचित देखभाल रखे तो हम गेहू को सालडेढ साल तक बहुत अच्छी दशा मे रख सकते हैं। यदि हम गेहू का आटा पिसवा लें तो उस आटे को अधिक समय तक अच्छी दशा मे नही रख सकते । डेढ-दो SHIRTHREE

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