Book Title: Mahavir aur Unki Ahimsa
Author(s): Prem Radio and Electric Mart
Publisher: Prem Radio and Electric Mart

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Page 158
________________ छोटे-छोटे रोग आज हमारी एक बुरी आदत यह भी बन गयी है कि हम तनिक सा भी कोई रोग, जैसे सिर दर्द, पेट दर्द, हलका बुखार, जुकाम आदि होने पर या तो डाक्टरो के पास भागे जाते है या कोई पेटेण्ट औषधि खा लेते हैं। परन्तु यह आदत ठीक नही है। इस प्रकार दवाइयो का सेवन करते रहने से हम अपने शरीर की, रोग के आक्रमण को रोकने तथा रोग हो जाने पर उस रोग से लडकर उसे दूर करने की, जो प्राकृतिक शक्ति है, उसको क्षीण करते रहते हैं। और अन्तत यह प्राकृतिक शक्ति इतनी क्षीण हो जाती है कि हमारा जीवन केवल औषधियो पर ही निर्भर होकर रह जाता है । एक बात और भी है, आजकल कुछ एलोपैथिक दवाइयाँ ऐसी बन रही हैं कि यदि कोई व्यक्ति थोडे दिनो तक उस दवाई को लेता रहे, तो वह दवाई उसके लिये प्रभावहीन हो जाती है और फिर बीमार पड़ने पर वह व्यक्ति उस दवाई से ठीक नही हो पाता। उसको और भी अधिक शक्ति (Potency) की दवाई लेनी पड़ती है, और फिर कुछ दिन बाद उससे भी अधिक शक्ति की। इस प्रकार अन्तत एक दिन ऐसा आ जाता है जब उस व्यक्ति का रोग लाइलाज हो जाता है। कुछ औषधिया (Wonder Drugs) तो इतनी अधिक शक्तिशाली होती है कि वे जीवन मे केवल एक बार ही ली जा सकती हैं। यदि एक बार वह औषधि सेवन कर ली, और फिर दुबारा बीमार हो गये तो कोई भी औषधि, रोगी पर अपना प्रभाव नही दिखा

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