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उपायों से उनकी सख्या बढा रहा है। अपने स्वार्थ के लिए पहले तो पशु-पक्षियों की संख्या बढाना और फिर उनका घात करना कहाँ तक न्यायोचित और मानवीय है ?
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समझ मे नही आता कि इन व्यक्तियो को ससार चलाने की जिम्मेदारी किसने सौंप दी है जिसको पूरा करने के लिए ये इन दीन-हीन मूक पशु-पक्षियो का बघ करने पर तुले हुए हैं ? यदि ये व्यक्ति मनुष्य जाति की भलाई ही करना चाहते हैं तो ऐसा करने के और भी बहुत से मार्गों है । क्या मनुष्य जाति को रोगो से छुटकारा मिल गया है? क्या अब कोई भी व्यक्ति अभाव के कारण दुखी नही है क्या अब मनुष्यों ने आपस मे युद्ध करना बन्द कर दिया है ? क्या अब मनुष्य आपस मे प्यार से रहने लगे हैं ? क्या अब ससार का कोई भी व्यक्ति निरक्षर नही रहा है मनुष्य के सामने अभी ऐसी अनेको समस्याए हैं, जिनका समाधान होना अभी बाकी है । अत जो सज्जन मनुष्या जाति की भलाई ही करना चाहते हैं वे इन मूक पशुओ की हत्या करने की बजाय अपना समय मनुष्यो के दुखदर्द दूर करने मे लगाये ।
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इसी प्रकार कुछ व्यक्ति बूढी गाय भैसो और बैलो की हत्या करने की वकालत करते हुए कहते हैं कि इन निकम्मे पशुओ को खिलाने की बजाये इनकी हत्या करके इनका मास खाना आर्थिक दृष्टि से अधिक लाभप्रद है ।
परन्तु यह दृष्टिकोण ठीक नही है । इन पशुओं का भोजन अधिकाश मे घास, पात, फलों के छिलके आदि ही होता है, जिससे मनुष्यों के खाद्य पदार्थों मे कोई कमी नही आती । और फिर वे अपने ऊपर हुए खर्च के लगभग बराबर ही गोबर के रूप मे हमें खाद दे देते है । अतः इन
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