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मदिरा का सेवन प्रचलित रहा है, तब यह बुरी कैसे हो सकती है ? इस सम्बन्ध में निवेदन है कि प्रथम तो इस बात का ही निश्चय नहीं है कि प्राचीन काल में प्रचलित सोमरस वास्तव मे मदिरा ही था अथवा अन्य कोई शक्तिवर्द्धक पेय था। दूसरे यह कि यदि कोई बुराई प्राचीन काल से चली आ रही है तो क्या वह बुराई नहीं रहती। क्या वह अच्छाई मे बदल जाती है ? यह सर्वविदित है कि विभिन्न धर्मों की प्राचीन काल की धार्मिक पुस्तकों में मदिरापान की सदैव निन्दा ही की गयी है। तथ्य यह है कि बुरी वस्तु चाहे वह नयी हो या पुरानी सदैव बुरी ही रहेगी, अतएव त्याज्य ही होगी।
(१०) शहद भी हिंसा के द्वारा ही प्राप्त होता है ।। वह मक्खियो द्वारा उगला हुआ रस होता है। इसको प्राप्त करने मे अनगिनत मक्खियो व उनके अण्डो का विनाश होता है। इसके पश्चात् भी इसमे असख्य जीवाणु उत्पन्न होते रहते हैं। इसलिए एक अहिंसक व्यक्ति को शहद का सेवन भी नही करना चाहिये ।
(११) रेशमी वस्त्रो का उत्पादन भी हिंसा के द्वारा ही होता है। रेशम प्राप्त करने के लिये असख्य रेशम के कीडो को पानी मे उबाला जाता है। इसलिए अहिंसक व्यक्ति को रेशम व रेशमी कपडों का प्रयोग नहीं करना चाहिये।
(१२) खाल व चमडा तो हिंसा के द्वारा ही प्राप्त किया जाता है। मोटा तथा मुलायम चमडा प्राप्त करने के लिये जीवित पशुओ के ऊपर उबलता हुआ पानी डाला जाता है और उनको बेंतों से पीटा जाता है। इसके पश्चात् जीवित अवस्था मे ही उनकी खाल खींच ली