Book Title: Mahavir aur Unki Ahimsa
Author(s): Prem Radio and Electric Mart
Publisher: Prem Radio and Electric Mart

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Page 91
________________ सकते, अपितु उसका सामना करने पर अपनी ही हानि कर लेंगे तो ऐसी दशा में क्या किया जाये? इसका उत्तर यही है कि यदि सिद्धान्तत. आपका विरोध उचित है तो आपको हर हालत मे आक्रमणकारी का विरोध करना ही है, चाहे आपको कितनी ही हानि होती हो। यदि आप अपने को निर्बल मानकर उसका प्रतिरोध नहीं करेंगे तो आप अहिंसक नहीं कायर होंगे। वास्तविक अहिसक तो वह है जो अपने में अपराधी को अथवा आततायी को दण्ड देने की पूरी क्षमता होते हुए भी उसको क्षमा कर देता है। इसके विपरीत निर्बल की अहिसा व क्षमा लाचारी है, कायरता है, अहिंसा तो कभी भी नही है। इसी प्रकार अपराधी को भी दण्ड देना चाहिये। किन्तु दण्ड देते समय हमारी भावना उससे बदला लेने की नहीं होनी चाहिये। हमारी भावना तो उसकी अपराधति को दूर करने की होनी चाहिए। हमको उसके साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिये, जिससे कि उसके हृदय में किसी प्रकार की कटुता उत्पन्न न हो, वह अपने अपराध पर स्वय ही लज्जित हो और भविष्य मे फिर अपराध न करे। सत्य तो यह है कि यदि अपराधी को दण्ड नहीं मिलता तो उसकी अपराध-वृत्ति बढती जाती है, जिसके कारण सारे समाज को कष्ट उठाना पड़ता है। इस सम्बन्ध मे एक प्रश्न यह भी उठता है कि यदि कोई दुराचारी किसी महिला से दुराचार करने का प्रयत्न करे तो ऐसे समय में वह महिला क्या करे ? __इस प्रश्न का समाधान भी ऊपर बा चुका है। उस महिला को किसी भो भय, धमकी अथवा शारीरिक कष्ट

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