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है। जब महात्मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त करने के लिए पर त्यागा था तब वह थोडे समय के लिए जैन मुनि को अवस्था में भी रहे थे। परन्तु जैन मुनि की कठिन चा पालन न कर सकने के कारण उन्होने कुछ समय पश्चात् वस्त्र धारण कर लिये थे। इस तथ्य का उल्लेख उन्होंने स्वयं बौद्धग्रथ 'मज्झिम निकाय महा सीहनाद सुत्त १२' मे किया है :___ "मैं वस्त्ररहित रहा, मैंने आहार अपने हाथो से किया। न लाया हुआ भोजन लिया, न अपने उद्देश्य से बनाया हुआ लिया, न निमन्त्रण से जाकर भोजन किया, न बर्तन से खाया, न थाली मे खाया, न घर की ड्योढी में (within threshold) खाया, न खिडकी से लिया, न मूसल के कूटने के स्थान से लिया, न गर्भिणी स्त्री से लिया, न बच्चो को दूध पिलाने वाली से लिया, न भोग करने वाली से लिया, न मलिन स्थान से लिया, न वहा से लिया जहां कुत्ता पास खडा था, न वहा से लिया जहा मक्खियां भिनभिना रही थी, न मछली, न मास, न सडा माड खाया, न तुस का मैला पानी पिया। मैंने एक घर से भोजन लिया सो भी एक ग्रास लिया, या मैंने दो घर से भोजन लिया दो ग्रास लिये। इस तरह मैंने सात घरो से लिया सो भी सात ग्रास, एक घर से एक ग्रास लिया। मैंने कभी दिन मे एक बार भोजन किया, कभी पन्द्रह दिन भोजन नही किया। मैंने मस्तक, दाढी व मूछो के केश लोच किये । उस केश लोच को क्रिया को चालू रक्खा। मैं एक बूद पानी पर भी दयालु रहता था। क्षुद्र जीव की हिंसा भी मेरे द्वारा न हो, ऐसा मैं सावधान था।" __ "इस तरह कभी गर्मी, कभी ठंड को सहता हुआ भयानक वन में नग्न रहता था। मैं आग से तापता नहीं