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लगेगा । परन्तु यदि आपको इस तथ्य का पता चल जाता है कि वह वस्तु समुचित स्तर की नही है तथा यह सिक्का खोटा है फिर भी यदि आप उसको चलाने का प्रयत्न करते हैं तो आप अवश्य ही दोषी हो जाते हैं। क्योंकि उस समय आपके मन मे यह विकार आ जाता है कि ग्राहक इस घटिया वस्तु को तथा खोटे सिक्के को बिना देखे-परखे ही ले जाये । आप यह तर्क देकर अपने दोष से बच नही सकते कि हमारे पास भी तो यह घटिया वस्तु या खोटा सिक्का पूरे मूल्य मे ही आया था। हमने अनुचित लाभ के लालच में अपनी ओर से यह घटिया वस्तु तथा खोटा सिक्का नही लिया। सोचने की बात तो यह है कि आपने अपनी असावधानी से अगर घटिया वस्तु ले ली है तो आपके ग्राहक इसका दण्ड क्यो भुगते ?
(५) किसी के साथ विश्वासघात करना, देश से द्रोह करना, पारिश्रमिक लेकर भी समुचित कार्य न करना, अपने कर्तव्य की अवहेलना करना, किसी को लाचारी का अनुचित लाभ उठाना, अनुचित किराया व अनुचित ब्याज लेना, शासन द्वारा लगाये गये करो की चोरी करना, शासन के नियमो को तोडना, झूठे पत्रक बनाना, घूस लेना व देना आदि कार्य भी हिंसा के ही रूप हैं।
इसी प्रकार एक वकील (न्याय के रक्षक) होते हुए झूठे मुकदमो की पैरवी करनी, तथा किसी को बेईमानी करने की सलाह देनी, एक न्यायाधीश होते हुए उचित न्याय न करना, तथा रिश्वत लेकर अथवा किसी के प्रभाव मे आकर न्याय के विपरीत निर्णय देना भी हिंसा की श्रेणी मे ही आते हैं। ऐसे कार्यों से प्रत्यक्ष मे हिंसा होती हुई दिखाई न देती हो, परन्तु इनसे समाज मे व देश मे अराज