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Treat भी भिन्न भिन्न प्रदेशो के शासक थे । यदि वे चाहते तो अपने राज्याधिकारो का प्रयोग करके उन प्रदेशों मे पशुबलि तथा अन्य प्रकार की हिंसा राजाज्ञा द्वारा बन्द करा सकते थे । परन्तु उन्होने राजकीय अधिकारो का प्रयोग उचित नही समझा। क्योकि वे जानते थे कि राजकीय नियम स्थायी नही होते । शासन में परिवर्तन होने के साथ-साथ वे भी बनते व बिगडते रहते हैं । इसलिए एक आदर्श नेता के समान पहले वे स्वय सर्वोच्च और आदर्श अहिंसक बने और उसके पश्चात ही उनकी अहिंसक वृत्ति के प्रभाव से जन-साधारण का हृदय परिवर्तन हुआ । वास्तव मे अपने अधिकारो का प्रयोग करके राजाज्ञा द्वारा हिंसा बन्द कराने के परिणाम क्या इतने प्रभावशाली व स्थायी हो सकते थे, जितने कि उनके द्वारा अपना समस्त जीवन ही अहिंसामय बना लेने से ? हुए आज सभी विद्वान यह स्वीकार करते हैं कि भारतवर्ष को अहिंसक बनाने का श्रेय यदि किसी को प्राप्त है तो वह भगवान महावीर को ही है ।
पूर्ण ज्ञानी होने तक मौन ही रहे.
उनकी एक विशिष्टता यह थी कि जब तक उनको पूर्ण ज्ञान प्राप्त नही हो गया, वे मौन रहकर ही चिन्तन-मनन व तपस्या मे लीन रहे और अपने साधना काल में उन्होने ससार को कोई उपदेश नही दिया । उनकी यह मान्यता थी जब तक कोई व्यक्ति स्वयं ही पूर्ण ज्ञानी न हो, तब तक वह दूसरो को उपदेश कैसे दे सकता है ? यद्यपि उस समय तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ द्वारा प्रतिपादित जैनधर्म प्रचलित था और भगवान महावीर ने भी उसी धर्म का प्रचार किया, परन्तु फिर भी स्वयं सर्वज्ञ होने तक उन्होंने