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नही रक्खा और निर्वाण प्राप्त करने तक वे नग्न दिगम्बर अवस्था में ही रहे। उस समय वैदिक ऋषि नगरो से बाहर बनों में अवश्य रहते थे, परन्तु वे एक गृहस्थ के समान ही रहते थे। उनके रहने के लिये उनका अपना आश्रम होता था। उनके पास पत्नी, सन्तान, धन-धान्य, गाय अदि सभी प्रकार का परिग्रह होता था। ऐसे समय में भगवान महावीर ने ससार के सम्मुख एक अनुपम और सर्वोच्च त्यागी का आदर्श प्रस्तुत किया।
एक बात और भी है। वैदिक ऋषि अपने आश्रमो की सुरक्षा और अपने धार्मिक अनुष्ठानो को निर्विघ्न सम्पन्न करने के लिये स्थानीय राजाओं पर निर्भर रहते थे, क्योकि बनो मे रहने वाले असभ्य व्यक्ति उनके आश्रमो को नष्ट करते रहते थे और धार्मिक कार्यों में बाधा डालते रहते थे। इसके विपरीत भगवान महावीर ने गहन बनो मे अकेले ही विहार किया। उनके साधना काल मे अनेको सम्य व असभ्य व्यक्तियो ने उनको जान-बूझ कर शारीरिक व मानसिक कष्ट दिये, परन्तु वे इन कष्टो को निविकार रहकर समताभाव से सहते रहे। उन्होने कभी भी इनका प्रतिकार नहीं किया। भगवान महावीर राजपुत्र थे
और यदि वे चाहते तो अपनी सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था करा सकते थे, परन्तु उन्होने ऐसा कभी नहीं किया और अकेले ही अपने मार्ग पर अविचल डटे रहे। वैन्य से छुटकारा : पुरुषार्थ की प्रतिष्ठा
भगवान महावीर के समय मे जो वैदिक यज्ञ होते थे, उनमें इन्द्र, वरूण, अग्नि आदि देवताओ का आह्वान किया जाता था और उनसे आरोग्यता, धन-वैभव, स्त्रीपुत्र आदि प्रदान करने की प्रार्थना की जाती थी। वेदों