Book Title: Mahapurana Part 3 Author(s): Pushpadant, P L Vaidya Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 8
________________ एलाचार्य श्रद्धेय मुनिश्री विद्यानन्दजीको समर्पित जो परम्परामें रहकर भी उसे नये सन्दर्भ दे रहे हैं। जो जैन-धर्मको उस विश्व-धर्ममें देखते हैं, जो मानव-धर्मको कसौटी पर खरा उतरे। जिनकी वीतरागता विद्यानुरागमें रूपायित है, विद्याका हर आयाम जिन्हें आन्दोलित करता है। जिनकी आत्म-साधना विश्वकल्याण-भावनासे अनुप्रेरित है। मूलतः कन्नडभाषी होकर जो ऐसी प्रांजल हिन्दी बोलते हैं कि जिसे सुनकर कोई कह नहीं सकता कि वे उत्तर भारतीय नहीं हैं। हालांकि साधुका अपना कोई देश नहीं होता, जाति नहीं होती। प्राकृत अपभ्रंशमें जिनकी गहरी और सक्रिय दिलचस्पी है, जो चाहते हैं कि उक्त समूचा साहित्य आधुनिक वैज्ञानिक पद्धतिसे सम्पादित होकर प्रकाशमें आये जिससे भारतीय सांस्कृतिक धाराके अनछुए तत्त्वों और अध्यायोंको उजागर किया जा सके। उनकी यह चाह मूर्त हो। -देवेन्द्रकुमार जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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