Book Title: Mahapurana Part 1
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ प्रधान सम्पादकीय कहा जाता है। जिनसेनरचित आदिपुराणमें सैंतालीस पर्व है जिनमेंसे आदिके तेंतालीस पर्व जिनसेनरचित हैं । और पुष्पदन्तके आदिपुराणमें सैंतीस सन्धियां है। कविने अपने महापुराणकी उत्थानिकामें जिन अनेक दार्शनिकों, कवियों और ग्रन्थकारोंको स्मरण किया है उनमें केवल तीन जैन है-अकलंक, चतुर्मुख और स्वयंभू । इनमेंसे अन्तिम दो अपभ्रश भाषाके महाकवि हैं । इनकी रचनाओं में आगम सिद्धान्त ग्रन्थ धवल जयधवलका स्मरण भी किया है। यथा __ 'णऊ बुज्झिउ आयम सद्दधामु, सिद्धंतु धवलु जयधवलु णाम ।' षट्खण्डागम सिद्धान्तपर वीरसेन स्वामीने धवला टीका रची थी और कसायपाहुडपर उन्होंने जयधवला टीका रची थी। इसे उनके शिष्य जिनसेनने पूर्ण किया था। यही जिनसेन संस्कृत महापुराणके रचयिता हैं । अतः धवल जयधवलसे परिचित पुष्पदन्त द्वारा जिनसेनका महापुराण भी देखा होना चाहिए । क्योंकि उनके महापुराण की भी कथावस्तु तो एक ही है और शायद उसीसे उन्हें अपभ्रशमें महापुराण रचने की प्रेरणा मिली हो । किन्तु उन्होंने उसका कोई संकेततक नहीं किया है। दोनों पुराणोंको तुलनात्मक दृष्टिसे देखनेपर दोनोंके वर्णनक्रममें कोई समानता प्रतीत नहीं होती। जिनसेनके महापुराणमें पर्व 4 से 11 तक भगवान् ऋषभदेवके पूर्व भवोंका वर्णन है। उसके पश्चात् उनके गर्भ, जन्म, दीक्षा आदिका वर्णन है। किन्तु पुष्पदन्तके महापुराणमें प्रारम्भसे ही ऋषभदेवके कल्याणकोंका वर्णन है। उसी प्रसंगमें प्रारम्भमें कुलकरोंका वर्णन है तथा बीसवीं सन्धिसे उनके पूर्वभवोंका वर्णन है । जिनसेनका महापुराण तो जैनोंका महाभारत जैसा है। उसमें वर्ण व्यवस्था, कुलाचार, सप्त परमस्थान, तिरपन क्रियाएँ, क्षत्रियधर्म, राजनीति आदिका वर्णन है जो अन्यत्र नहीं है । पुष्पदन्तके महापुराणमें यह सब नहीं है। वह तो अपभ्रंश भाषाका एक महाकाव्य है। अपभ्रंश भाषामें भी इतनी सुललित पदावलीपूर्ण सरस रचना हो सकती है जो संस्कृत रचनाके माधुर्यसे प्रतिद्वन्द्विता कर सकती है, यह उसको देखकर ही जाना जा सकता है। उसकी पदावलीमें कादम्बरीके गद्य-जैसा शब्द विन्यास दृष्टिगोचर होता है और वह उससे कम दुरूह नहीं है। प्राकृत भाषाके पण्डितको भी पुष्पदन्तके इस महाकाव्यको हृदयंगम करने में कठिनताका अनुभव हो सकता है। अतः जिनसेनके महापुराणकी अपेक्षा पुष्पदन्तके महापुराणका हिन्दी अनुवाद कठिन है। . महापुराणका सम्पादन एवं हिन्दी अनुवाद स्व. डॉ. पी. एल. वैद्यके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करना हमारा कर्तव्य है जिन्होंने मूल अपभ्रंश ग्रन्थका संशोधन-सम्पादन किया और संसारको इस कृतिके महत्त्वसे परिचित कराया। डॉ. देवेन्द्रकुमार जैनने इस महाग्रन्थका हिन्दी अनुवाद किया है। अनुवादकी दृष्टिसे सम्पूर्ण ग्रन्थ छह भागोंमें प्रकाशनार्थ नियोजित है। इस साहसपूर्ण कार्यके लिए हम उनकी प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकते । अनुवादमें यत्र-तत्र कुछ सैद्धान्तिक त्रुटियाँ रह गयी हैं। उन्होंने अपनी इस कठिनाईको अनुभव करके ही अपने कृतज्ञता-ज्ञापनमें अनुवाद सम्बन्धी त्रुटियोंकी सूचना देनेका पाठकोंसे अनुरोध किया है। ग्रन्थमें 'भूल-सुधार' पत्रक भी दे दिया गया है । पाठक उससे लाभान्वित होंगे। प्रसन्नताकी बात है कि भारतीय ज्ञानपीठको जो सांस्कृतिक-साहित्यिक आधार संस्थापक स्व श्री साहू शान्तिप्रसादजी और उनकी विदुषी धर्मपत्नी स्व. रमा जैनने दिया उसका संवर्धन करने में श्री साहू श्रेयांसप्रसादजी (साहूजीके ज्येष्ठ भ्राता) और श्री अशोक कुमारजी ( साहूजीके ज्येष्ठ पुत्र ) दत्तचित्त हैं । भविष्य में इन सत्प्रयत्नोंका प्रवाह अक्षण्ण रहेगा, ऐसी आशा सारे विद्वज्जगतकी सार्थक होगी। 11 मार्च 1979 कैलाशचन्द्र शास्त्री ज्योतिप्रसाद जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 560