Book Title: Mahabandho Part 6
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 14
________________ १३ विषय-पारचय मूल प्रकृतियोंका ओघसे उत्कृष्ट व जघन्य स्वामित्व मूल प्रकृतियाँ उत्कृष्ट स्वामित्व जघन्य स्वामित्व छह मूल प्रकृ० 1 छह कर्मोंका बन्ध करनेवाला उपशामक व क्षपक प्रथम समयमें तद्भवस्थ हुभा जघन्य योगसे युक्त और जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला भी कोई सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त मोहनीय कर्म सात कर्मोंका बन्धक, उत्कृष्ट योगसे युक्त और उस्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाला कोई सम्यग्दृष्टि व मिथ्यादृष्टि संज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त आयु कर्म आठ कर्मोंका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगवाला कोई सम्यग्दृष्टि व मिथ्याष्टि चारों गतिका संज्ञी पर्याप्त जीव । क्षुल्लक भवके तृतीय त्रिभागके प्रथम समयमें विद्यमान, जघन्य योगसे युक्त और जघन्य प्रदेशबन्ध करनेवाला कोई सूक्ष्म निगोद अपयाप्त जीव उत्तर प्रकृतियोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, सातावेदनीय, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायका उपशामक और उपक सूचमसाम्पराय जीव; निद्रा, प्रचला, छह नोकषाय और तीर्थकर प्रकृतिका सम्यग्दृष्टि जीव; अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कका असंयतसम्यग्दृष्टि जीव, प्रत्याख्यानावरणचतुष्कका देशसंयत जीव, संज्वलनचतुष्क और पुरुषवेदका उपशामक और सपक अनिवृसिकरण जीव, असातावेदनीय, मनुष्यायु, देवायु, देवगति, वैक्रियिकशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वर्षभनाराचसंहनन, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेयका सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि संज्ञी पर्याप्त जीव; आहारकद्विकका अप्रमत्तसंयत जीव तथा शेष प्रकृतियोंका मिथ्यादृष्टि संही पर्याप्त जीव उस्कृष्ट प्रदेशबन्ध करता है । तथा नरकायु, देवायु और नरकगतिद्विकका असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीव; देवगतिचतुष्क और तीर्थकर प्रकृतिका असंयतसम्यग्दृष्टि जीव; आहारकद्विकका अप्रमत्तसंयत जीव और शेष प्रकृतियोंका तीन मोड़ोंमें से प्रथम मोड़े में स्थित सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीव जघन्य प्रदेशबन्ध करता है। मात्र तिर्यश्चायु और मनुष्यायुका जघन्य प्रदेशबन्ध आयुबन्धके समय कराना चाहिए । यहाँ यह सामान्यरूपसे स्वामित्वका निर्देश किया है । जो अन्य विशेषताएँ हैं वे मूलसे जान लेनी चाहिए। मात्र जो उस्कृष्ट योगसे युक्त है, और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धके साथ कमसे कम प्रकृतियोंका बन्ध कर रहा है वह उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी होता है। तथा जो जघन्य योगसे युक्त है और जघन्य प्रदेशबन्धके साथ अधिकसे अधिक प्रकृतियोंका बन्ध कर रहा है वह जघन्य प्रदेशबन्धका स्वामी होता है। प्रत्येक प्रकृतिके उत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशबन्धके समय इतनी विशेषता अवश्य जान लेनी चाहिए । कालप्ररूपणा-इस अनुयोगद्वारमें ओघ व आदेशसे मूल व उत्तर प्रकृतियोंके जघन्य और उत्कृष्ट प्रदेशबन्धके कालका विचार किया गया है। उदाहरणार्थ ज्ञानावरणका उत्कृष्ट प्रदेशवन्ध दशवें गुणस्थानमें होता है और वहाँ उस्कृष्ट योगका जघन्य काल एक समय और उस्कृष्ट काल दो समय है, इसलिए इसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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