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अर्थनिर्णयमा उपयोगी थया छे. भगवद्गोमंडल मग थी ९, भगवतसिंहजी, प्रका. प्रवीण प्रकाशन, राजकोट, १९८६ (पुनर्मुद्रण).
अनेक संस्कृत शब्दो, मध्यकालीन शब्दो, विविध विद्याशाखाना पारिभाषिक शब्दो, ऐतिहासिक नामो- व्यक्तिओ वगैरेनां - ने समावतो आ कोश मात्र शब्दार्थकोश नहीं पण कंईक अंशे सर्वसंग्रह बनवा ताके छे. जोके एमां पूरी अधिकृतता साधी शकाई नथी. शब्दोना अनेक अर्थो नोंधाय छे ते घणी वार तो काचांपाका साधनोमांधी भेगा करेला जणाय छे. मध्यकालीन शब्दो परत्वे घणी वार एता प्रयोग दर्शावती पंक्ति उद्धृत करवामां आवी छे. परंतु करवामां आवेलो अर्थ एमां बंध बेसती न होय एवू पण कोईकोई वार जोवा मळ्युं छे. तेम छतां काळजीपूर्वक उपयोग करीए तो आ ग्रंथमांथी काची सामग्री अवश्य मळी रहे छे. आ ग्रंथमां
२,८१,००० उपरांत शब्दो छे. राजस्थानी सबद कोस खंड १थी ४ ग्रंथ १थी ९, सीताराम लालस, प्रका. राजस्थानी शोध संस्थान, (पछीथी) उपसमिति, राजस्थानी सबद कोस, जोधपुर, १९६२-१९७८.
आ कोश राजस्थानी शब्दोना अर्थ हिंदी भाषामां आपे छे. सानुस्वार वर्णो निरनुस्वार वर्णोनी पूर्वे मुकायेला छे ते उपरांत वर्णक्रमनी एक ध्यान खेंचती लाक्षणिकता ए छे के एमां ल-ळने एकरूप गणी 'ल'ना क्रममा साथे ज राखेल छे. 'श' ने 'ष' नथी, एकल्मे 'स' छे. एटले 'श'वाळा शब्दो 'स'मां ज शोधवाना रहे छे. शब्दार्थोनी साथे घणी वार उदाहरणरूप पंक्तिओ - एकथी वधु पण - टांकी छे. चारणी भाषाना घणा शब्दोनो समावेश छे, ते उपरांत घणा उच्चारभेदोने समावी लेवाया छे. अपायेला अर्थो सो टका प्रमाणभूत नथी, पण कदाच भगवद्ग्रोमंडल करतां आ कोशनी प्रमाणभूतता वधारे छे. आ कोशमां आशरे २,००,००० शब्दो
मध्यकालीन गुजरातना जैन साधुकविओ राजस्थान-गुजरातमा विहार करनारा हता. तेथी राजस्थानीमां टकेला अने गुजरात लुप्त थयेला घणा शब्दार्थों एमनी कृतिओमां जोवा मळे छे. एवा शब्दार्थों परत्वे आ कोश खूब उपयोगी थयो छे. एम पण कही शकाय के मध्यकालीन गुजराती शब्दकोशने सौथी वधु उपयोगी थयेलो आ कोश छे. लेक्सिकोग्रॅफिकल स्टडिझ इन जैन संस्कृत, बी. जे. सांडेसरा अने जे. पी. ठाकर, प्रका. ऑरिएन्टल इन्स्टिट्यूट, बरोडा, १९६२.
आमां त्रण जैन प्रबंधोना शब्दो, कृतिवार अलगअलग आपवामां आवेल छे.
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