Book Title: Madhyakalin Gujarati Shabdakosha
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 654
________________ थोडी शब्दार्थचर्चा . ५६८ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश १. अउले खाले वहै जिनरा.मां शालिभद्रनी रिद्धिना वर्णनमां नीचेनी पंक्ति आवे छे : जीहो अउले खाले वहै, जीहो कस्तूरी घनसार. ४,११ संपादक 'अउले'ना 'तरल, अवलेह' एवा अर्थो आपे छे, जे अहीं कोई रीते बेसता नथी. 'अउले खाले वहै' ए रूढिप्रयोग होवानुं समजाय छे. अवळी खाळे वहे, एटले ऊभरावू, छलकावू. शालिभद्रने घरे कस्तूरी अने कपूर अंगलेपमा एटलां वपराय छे ने धोवाईने खाळमां एटलां वहे छे के खाळ एनाथी ऊभराय छे. ए नोंधपात्र छे के आवो रूढिप्रयोग राजस्थानी शब्दकोश के रूढिप्रयोगकोशमां नोंधायेलो नथी. २. अउल्हाइ जिनरा.अंतर्गत 'गोडी पार्श्वनाथ स्तवन'मां नीचेनी पंक्तिओ आवे छे : देव पणाइ देवले, गउडेचा राय, दीठा ते न सुहाइ रे, गउडेचा राय, इक दीठा मन हुलसइ, गउडेचा राय, ___ इक दीठा अउल्हाइ, रे गउडेचा राय, 'ओलावु' शब्द 'बुझाएँ, ठरवु' एवा अर्थमां जाणीतो छे. पण ए अर्थ अहीं नथी ए स्पष्ट छे. 'हुलसइ' (उल्लास पामे)ना विरोधी अर्थनो ज ए शब्द होई शके. नाहटा 'संकुचित थ' एवो अर्थ ले छे. पण 'उल्लास पामे'ना बराबर विरोधी अर्थमां आ शब्द नोंधायेलो मळे छे. 'देशीशब्दसंग्रह' 'ओहुल्लि' एटले 'खिन्न' अने 'ओहुल्लिय' एटले 'म्लान' अर्थ आपे छे. तो अहीं पण "एक देवने जोतां मन उल्लास पामे, एक देवने जोतां मन खिन्न थाय" एम अर्थ बराबर बेसे. ३. अउगनाइ उक्तिर.मां 'अउगनाइ' शब्द नोंधायेलो छे ते ध्यान खेंचे छे. एनो संस्कृत पर्याय एमां 'अपकर्णयति' अपायेलो छे. आ 'अउगनाइ' ते 'अवगणे' ? उक्तिर.मां संस्कृत पर्यायो घडी काढेला मळे छे अने संस्कृत कोशो 'अपकर्णयति' शब्द नोंधता नथी. पण उक्तिर.ने 'अवगणे' ज अभिप्रेत होय तो संस्कृत 'अवगणयति' ए न आपी शके एम मानवं मुश्केल छे. बीजी बाजुथी, 'अवगणे'नुं जूनुं रूप 'अउगणइ' होय अने ए ज 'अवगणयति' परथी आवे, 'अउगनाइ' नहीं. एटले 'अउगनाइ' ए 'अउगणइ'थी जुदो शब्द होवानो संभव रहे छे. एनो 'अपकर्णयति' ए पर्याय आपवामां आव्यो छे तो तेनो अर्थ 'सांभळे नहीं, ध्यानमां न ले' एवो अभिप्रेत होवानु संभवित छे.२ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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