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थोडी शब्दार्थचर्चा . ५७४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश नरका.मां -
नेतिनेति करी निगम भाखे प्रेमाका.मां -
जेने निगम नेतिनेति गाय. अखाका.मां 'अगम'नो अर्थ 'अगम्य' आपवामां आव्यो छे. नरका.मां पहेली पंक्ति परत्वे 'अगम्य, कळी न शकाय एवं' ए अर्थ तथा बीजी पंक्ति परत्वे 'गूढ शक्ति धरावनार, भविष्यनो विचार करी शकनार' ए अर्थ आपवामां आव्यो छे. आ बीजो अर्थ 'अगम' शब्द गुरुनुं विशेषण होवाने कारणे अपायो छे पण ए अर्थ लेवा माटे शो आधार छे ते स्पष्ट थतुं नथी. आ पंक्ति परत्वे 'निगम'नो अर्थ तो अपायो ज नथी. एम लागे छे के अन्यत्र बधे 'अगमनिगम' ए शास्त्रग्रंथोने दर्शावतुं जोडकुं होय तो अहीं पण एम ज मान, जोईए अने 'गुरु' 'शिष्य' ए शब्दोने जुदी रीते घटाववा जोईए. 'अगम' ने 'निगम' एम बन्ने छूटां पाडीने उल्लेखवामां आवे छे ते परथी ए बंने शास्त्रग्रंथोना प्रकारो होवानुं स्पष्ट छे तेथी 'अगम'नो 'अगम्य, न कळी शकाय एवु' ए अर्थ पण योग्य नथी.
मदमो.मां 'अगंम'नो अर्थ 'आगम, शैव शास्त्रो' आपवामां आव्यो छे. संस्कृत कोश 'आगम'नो एक आवो अर्थ नोंधे छे पण बीजा 'परंपरागत पवित्र शास्त्रग्रंथो' 'ब्राह्मणग्रंथो' 'वेद' एवा अर्थो पण नोंधे छे. अहीं 'शैव शास्त्रो' एवो संकुचित विशिष्ट अर्थ लेवा माटे शुं कारण छे ए समजातुं नथी. 'अगंम'नो ए अर्थ करीए तो एनी साथे आवेला 'नीगम' शब्दनो शो अर्थ करवो ? मदमो.मां 'नीगम'नो अर्थ अपायो ज नथी. _ 'निगम' शब्दनो सर्वत्र 'वेदग्रंथो' एवो अर्थ करवामां आव्यो छे. एने संस्कृत कोशनो आधार छे, परंतु संस्कृत कोश 'वेदनी समजूती आपतो परवर्ती ग्रंथ' एवो पण अर्थ आपे छे.
_ 'अगम' ने 'निगम' द्वारा मूळ ग्रंथ - वेद अने एना परवर्ती ग्रंथोनो उल्लेख होय ए ज तर्कगम्य लागे छे. कया शब्दनो कयो अर्थ करवो एनो थोडो कोयडो छ ने कदाच मध्यकाळमां संस्कृतमा छे तेवी अस्पष्ट स्थिति ज होय. छतां वधारे संभवित ए लागे छे के 'अगम' द्वारा मूलग्रंथो - वेदग्रंथो अभिप्रेत होय अने 'निगम' द्वारा एना परवर्ती ग्रंथो. नरसिंहनी कृतिमां 'अगम' गुरु अने 'निगम'ने शिष्य कहेल छे ते आ संदर्भमां सूचक बने. 'नेति नेति' कहेनार मात्र वेदग्रंथो ज शा माटे ? त्यां पण 'शास्त्रग्रंथो' एवो सामान्य ने व्यापक अर्थ लेवो जोईए एम लागे छे.
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