Book Title: Madhyakalin Gujarati Shabdakosha
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 702
________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ६१६ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश गुजरातीना प्रयोगो . (१) प्राचीसं.-अंतर्गत पाल्हणकृत 'आबूरास' (१२३३)मां - त करिज मंदिर तिजपाल तुहूं, हियइ म धरिजहु काणि. (२३) राजा सोम तेजपालने आबु पर मंदिर बांधवा माटे जग्या आपे छे त्यारे बोलायेली आ उक्ति छे. संपादकोए अहीं 'काणि'नो अर्थ 'चिंता' को छे. ए अर्थ संदर्भमां बेसे छे. पण गुजरातीना जे अन्य प्रयोगो मळे छे तेमां 'चिंता' अर्थ भाग्ये ज जोवा मळे छे, 'लज्जा, शरम, संकोच' ए अर्थ अत्यंत व्यापक छे. एमांथी 'संकोच' ए अर्थ अहीं सरस रीते बेसी जाय छे : "मनमां संकोच न राखतो". अने राजस्थानी शब्दकोश 'काण' 'काणि' ए शब्दोना अनेक अर्थो नोंधे छे तेमां 'मान, प्रतिष्ठा, इज्जत; लोकलज्जा, मर्यादा; संकोच; हद, सीमा' ए अर्थो छे, पण 'चिंता' ए अर्थ नथी. एटले चिंता ए अर्थने आ पद्यना संदर्भ सिवाय बीजो टेको नथी एम कहेवाय. आ रीते अहीं 'संकोच' ए अर्थ लेवो ज इष्ट कहेवाय. ('चिंता' ए अर्थ माटे जुओ हवे पछी क्रमांक ११). (२क) गुर्जरा.-अंतर्गत वस्तिगकृत 'चिहुंगति चोपाई' (१४मी सदी पूर्वाध)मां - पुद्गल तणीय संख्या जाणि फिरतई जीवि न कीधी काणि (४९) संपादके 'a visit of condolence' (खरखरो) ए अर्थ आप्यो छे, जे ए शब्दनो अत्यारे प्रचलित अर्थ छे. पण अहीं ए कोई रीते बंधबेसतो थतो नथी. 'संकोच' ए अर्थ ज संगत बने तेम छ - "पुद्गलनी घणी संख्या छे. एमां भटकवामां जीवे कशो संकोच राख्यो नथी." मतलब के जीव अनेक पुद्गलोमां भन्यो छे. (२ख) गुर्जरा.-अंतर्गत शालिभद्रसूरिकृत 'पंच पांडव चरित रास' (१३५४)मां - मई मुरखि अजाणि अविणउ कीधउ तुम्हा रहइं, मूं मोटि मुहकाणि तुम्हं खमु अवराहु मुह. (८,१२) वनवास पामेला पांडवोने पुरोचन द्वारा आ शब्दो कहेवडावी दुर्योधन एमने वारणावत जवा विनंती करे छे. संपादकोए अहीं 'मुहकाणि'नो अर्थ 'a visit of condolence' (खरखरो) आप्यो छे, जे 'मोंकाण' शब्दनो अत्यारे प्रचलित अर्थ छे. परंतु ए स्पष्ट छे के आ संदर्भमां ए अर्थ तद्दन असंगत छे. अपभ्रंशनो 'वेर' 'झघडो' ए अर्थ पण बेसी शके तेम नथी. गुजराती परंपरामां व्यापक रीते जोवा मळतो 'लज्जा, शरम'नो अर्थ बेसी शके खरो – “में मूरखाए अजाणपणे तमारो अविनय कर्यो. मने एनी खूब शरम आवे छे. तमे मारा अपराधनी क्षमा करो" - परंतु 'दुःख' 'वसवसो' 'अफसोस' एवो अर्थ कदाच वधु उपयुक्त लागे - "मने एनुं भारे दुःख छे, मने एनो भारे वसवसो | अफसोस छे." तो, 'काणि' शब्दना आ प्रकारना अर्थनो Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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