Book Title: Madhyakalin Gujarati Shabdakosha
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 706
________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ६२० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश (१०) नाकरकृत 'आरण्यक-पर्व' (१६मी सदी मध्यभाग) (महाभारत भा.२, संपा. केशवराम का. शास्त्री, १९३४) : विद्या न भणि, लोपि निजकर्म, अवसर आवि नवि करि धर्म, त्रिया तणी जे आणइ काणि, तेह तु आलशी चोथु जाणि. (१०६, ४१) कृतिमां चार प्रकारना आळसुओ, वर्णन थयेलुं छे, तेमां आ आखी कडीमां चोथा प्रकारना आळसुनुं वर्णन छे. संपादके अहीं 'काणि'ने अर्वाचीन गुजराती 'काण'ना अर्थने आधारे घटाव्यो छे अने "स्त्री मरी जतां जे रडतो आवे" एवो अर्थ कर्यो छे. विशेष समजूती पण आपी छे के "मुद्दे तेम न करतां तेणे सत्ताथी बीजी स्त्री करवी, तो ते आळसु न गणाय." देखाई आवे छे के वाक्यान्वय साथे घणी छूट लईने अर्थ करवामां आव्यो छे अने समजूती पण साहसिक छे. अहीं 'लाज, शरम, संकोच' ए अर्थ बेसाडवामां कशी मुश्केली लागती नथी - "स्त्रीनी जे लाज-शरम राखे, एने कहेवा योग्य कही न शके ए चोथो आळसु." (११) अंबरा.(१५८३)मां - देवादित्य राणी प्रति कहइ, लज्जा कारण मुझ मनि दहइ, अपयश एक धर्मनी हाणि, कहु साईं म करु मनि काणि. (१०७-०८) राजाराणी वनवासमां छे. राणीने पहेलेथी पेट रह्यं हतुं ते हवे गर्भ वधतां राजाने एनी जाण थाय छे. ए प्रसंगे राजा राणीने खरी हकीकत पूछतां आ शब्दो बोले छे. संपादके 'काणि' शब्दनो अर्थ 'चिंता' आप्यो छे, जे पहेली दृष्टिए बेसी जाय, परंतु 'चिंता' अर्थने परंपरानो टेको नथी अने क्रमांक १नी पेठे 'लज्जा, संकोच' ए अर्थ वधारे योग्य रीते बंध बेसे छे : "राजा देवादित्य राणीने कहे छे के (वानप्रस्थमां पुत्रजन्मनो अवसर आवतां) मने लज्जा थाय छे ने तेथी मनमां बळे छे. धर्मभंगनो अपयश आमां रहेलो छे. खरेखर हकीकत शुं छे ते कहो, मनमां कशो संकोच न राखो." (१२) आरारा.अंतगर्त समयप्रमोदकृत 'आरामशोभा चोपाई (१५९५)मां - आव्यउ पीहरि तुम्ह तणइ, खोलउ छंडी काणो रे. (१०५) पोतानो पिता लाडुनो घडो लाव्यो छे ते खोलवा राणी राजाने विनंती करे छे, त्यारे राजा द्वारा बोलायेली आ उक्ति छे. अहीं 'काण' (प्रास-अर्थे 'काणो')नो 'संकोच' ए अर्थ स्पष्ट छ - "तारा पियरथी ए आव्यो छे, माटे तुं ज संकोच छोडीने एने खोल." ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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