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थोडी शब्दार्थचर्चा
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मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश
रजू करती आ पंक्तिओ छे. संपादके 'काण' शब्दनो 'कहाण, कथन' एवो अर्थ आप्यो छे, पण ते संदर्भमां अस्पष्ट ज रहे छे. अहीं पण ‘काण' शब्दनो प्रयोग थोडो कोयडारूप छे, पण 'संकोच'नो अर्थ ज वधु प्रतीतिकर छे : ब्रह्म अनेक रूपे विस्तरे छे, एमां ए कर्ता कशो संकोच राखतो नथी, पण एनां ए अंगोनुं प्रवर्तन कर्ताथी जुदं ज होय छे. (२१) आनंदघनकृत 'बावीसी' (१७मी सदी उत्तराध)मां -
ज्ञानस्वरूप अनादि तुह्मारुं ते लीधुं तुझे तांणी,
जुओ अज्ञानदशा रीसावी, जातां काणि न आंणी हो. (१९, १)
आ मल्लिजिनने संबोधायेली स्तुतिरूप उक्ति छे. एमांना 'काणि' शब्दना प्रयोगर्नु सविशेष महत्त्व छे, ते एटला माटे के एनो ज्ञानविमलसूरिए करेलो (१७१३) अर्थ आपणने प्राप्त थाय छे. ज्ञानविमलसूरि आ कडीनी समजूती आ प्रमाणे आपे छे : 'हे नाथ ! तुह्मारुं अनादि ज्ञानस्वरूप निरूपाधिक ज्ञान ते तुह्मारुं तुझे ताणी लीधुं - निरावरणी थई संग्रझुं. ते देखी अज्ञानदशा अनादिनी हती ते रीसावी गई. ते जाती जाणी देखीनइं काई मनमा शंका कांसलि नाणी, मनावी पणि नहीं.'
___ए स्पष्ट छ के ज्ञानविमले 'काणि' शब्दना 'शंका' 'कांसलि' ए अर्थो कर्या छे. 'जातां काणि न आणी' ए वाक्य एमणे मल्लिनाथने संदर्भ घटाव्या छे ने अज्ञानदशाने चाली जतां जोईने मल्लिनाथना मनमां कशी 'शंका' के 'कांसलि' न थई एम एमनुं कहेवानुं छे. 'कांसलि' शब्दनो संपादके 'खटक, वसवसो' एवो अर्थ आप्यो छे (ए अर्थ शब्दकोशोमां नोंधायेलो मने मळ्यो नथी के कोई बीजो प्रयोग पण मळ्यो नथी; ए 'कासळ' एटले 'नडतर'नुं ज अन्य रूप ?) 'खटक' ए अर्थ अहीं बराबर बेसी जाय छे. 'शंका' शब्दने अहीं 'अचकाट, द्विद्या' एवा अर्थमां आपणे लेवानो रहे, 'वहेम'ना अर्थमां नहीं. आ अर्थो 'संकोच'ना अर्थनी नजीक आवी जाय छे.
गमे तेम, मध्यकाळमां 'काणि' शब्द 'शंका' 'खटक' 'वसवसो' एवी अर्थछायामां समजवामां. आवतो हतो एनो पाको पुरावो ज्ञानविमलसूरिना आ विवरणमांथी प्राप्त थाय छे अने आ पूर्वे आ अर्थोनो संभव देखायो छे (शंका - १४; कष्ट, दुःख, खटक - ६, १४, १९, २०, २२) तेने आथी टेको मळे छे.
. 'जातां काणि न आणी' ए वाक्यने ज्ञानविमले मल्लिनाथ साथे जोड्यं छे तेने पछीनी कडीओनुं समर्थन छे. पछीथी निद्रा ने स्वप्नदशा रिसाई गई ने नाथे मनावी नहीं, मिथ्यामतिने अपराधिनी जाणी नाथे घरथी बहार काढी ए प्रकारनी उक्तिओ मळे छे. पहेली दृष्टिए तो आपणे अज्ञानदशानी साथे वाक्य जोडी दईए अने अज्ञानदशाए जातां कई 'काणि' (संकोच, वसवसो) न करी एम अर्थ करी बेसीए. परंतु पछीनी कडीओनी उक्तिलढणो जोतां ज्ञानविमलसूरिना अर्थघटनने न स्वीकारवा कारण जणातुं
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