Book Title: Madhyakalin Gujarati Shabdakosha
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश
६२३
. थोडी शब्दार्थचर्चा
ब्राह्मण प्रत्ये बोलायेला आ हरिश्चन्द्रना शब्दो छे. संपादके 'ठपकापात्र वर्तणूक' एवो अर्थ लीधो छे (जे भगवद्गोमंडलें समावी लीधी छे !), जे संदर्भमां, जरा कढंगी रीते पण बेसे छे - "कन्यानी माताने पण साथे लावजो, (न लाववानी) ठपकापात्र वर्तणूक (भूल) न करशो." परंतु आ अर्थने परंपरानो टेको नथी अने परंपरानो जाणीतो 'संकोच' ए अर्थ अहीं आबाद रीते बेसी जाय छे - "माताने साथे लावजो, संकोच करशो नहीं." आ स्थितिमां, अहीं 'संकोच' ए अर्थ ज रहेलो होवानुं मानवू जोईए. (१८क) एमां ज -
ज्यम होय त्यम कहो, ऋषिजी ! रखे करता काण. अहीं 'संकोच'नो अर्थ स्पष्ट छ : “जे होय तेवू कहेशो, रखे कई संकोच करता."
(१९) प्राचीका.-अंतर्गत अज्ञात कविकृत 'माधवानल कथा' (अनुमाने १७मी सदी पूर्वाधीमा -
सुणी वात काम्यन्य तणी, मन मांहि उपनी काणि,
जेणि परि राजा दशरथ मूउ, तेणि पिरि माधव जाणि. (४१७) कामकंदलाना मृत्युना समाचार मळतां एना आघातथी माधव मृत्यू पामे छे ते प्रसंगर्नु वर्णन करती आ पंक्तिओ छे. संपादके 'काणि' शब्दनो 'विचार, चिंता, वात' एवा अर्थोनो तर्क कर्यो छे अने गुजराती 'कहाणी, काण' ए शब्दो तरफ ध्यान दोर्यु छे, पण अहीं 'काणि' शब्दनो प्रयोग थोडो कोयडारूप छे. 'लज्जा, संकोच' ए जाणीतो अर्थ अहीं उपयुक्त नथी; 'चिंता' ए अर्थने परंपरानो टेको नथी (जुओ आ पूर्वे क्रमांक १ अने ११) ते उपरांत अहीं 'चिंता' करतां आघातनी लागणीनो निर्देश वधु संभवित गणाय. तो पछी अहीं ए हिंदी 'कानि' (कष्ट, दुःख) शब्द रहेलो मानवो ? के पछी 'काणि'ना 'संकोच' अर्थमांथी 'खटको, शल्य' एवो अर्थ विकस्यो होवान अने अहीं अर्थ होवानुं मानवू ? ('कष्ट, शल्य' ए अर्थो माटे जुओ क्रमांक ६, १४ अने २१) (२०) अखाका.-अंतर्गत 'सोरठा' (१७मी सदी मध्यभाग)मां -
सहुय तारो साज, तुं स्वामी सर्वे तणो. (२१७) बहु पग, बहु पाण, बहु नासा ने नेत्र बहु, कर्ता न करे काण, अंग-विचरण अळगां अखा. (२१८) नीचथी अतिशे नीच, आचरतुं नव ओसरे,
(पाठां. सहुए तोरां काज) कर्म असंख्यनो कीच, तुंने न लागे, त्रीकमा ! (२१९) आ सृष्टि ब्रह्मनो विस्तार छे, पण ब्रह्म एनाथी अलिप्त छे ए वेदांतना तत्त्वविचारने
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