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थोडी शब्दार्थचर्चा
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. मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश
(राजस्थानी 'धोटा' एटले पुत्र.)
(१६) उक्तिर.(१७मी सदीनुं पहेलुं चरण)मां -
साधुसुन्दरगणिए 'काणि' शब्द नोंध्यो छे अने एनो संस्कृत पर्याय 'कानिः' आप्यो छे, परंतु आ तो मूळ शब्दनुं संस्कृतीकरण जणाय छे. तेथी 'काणि' शब्दना अर्थ पर कशो प्रकाश पडतो नथी. नहीं तो ते समयनी ज अर्थनी नोंध घणी मार्गदर्शक बनी
होत.
(१७) प्रद्युचु.(१६२६)मां -
तुम्हे केहनी म करु कांणि, हारइ ते शिर मूंडी आणि. (१२०) सत्यभामा अने ऋक्मिणीने गर्भ छे अने बन्ने वच्चे शरत थाय छे के पुत्रजन्ममां जे पाछळ रहे ते हारी गणाय. आ संदर्भमां बोलायेली आ उक्ति छे. संपादके 'काणि'
शब्दनो 'लज्जा' एवो अर्थ आप्यो छे अने ए यथायोग्य छे. आ पंक्तिमां एम कहेवायु • छे के तमारे कोईनी शरम राखवानी जरूर नथी, जे हारे ते माथु मूंडावे.
(१७क) एमां ज -
ऊपनु कोप थई चिचि काणि. (५४८) आ पंक्तिनो शब्दकोशमां संदर्भ नथी. अहीं 'संकोच, खटको' एवो अर्थ संदर्भमां बराबर बंध बेसे छे : “(कृष्णे प्रद्युम्नकुमार साथे लडवानो) संकोच के खटको छोडी दीधो अने ए क्रोधाविष्ट थया." ('खटको' ए अर्थ माटे जुओ क्र.५ अने २०) (१७ख) एमां ज -
छांडी हापा शेठनी कांणि, धूरत एक घरि घालिउ आंणि. (३२७)
आ पंक्तिनो पण आपेला शब्दकोशमां संदर्भ नथी. अहीं 'लाज, शरम'नो अर्थ स्पष्ट छे : "हापा शेठनी लाज छोडीने एणे एक धूर्तने बोलावी घरमां घाल्यो." ।
(१७ग) पुण्यसागरकृत 'अंजनासुंदरी रास' (१६५३) (जैन गूर्जर कविओ, भा.३, पृ.२२ पर उद्धृत अंश)मा -
सेवकनि सानिधि करी, देवो अविरल वाणि,
जेम वेगे सिद्धि चढइ, काइ म राखिस काणि. सरस्वतीदेवीनी आ स्तुतिमा 'काणि'नो 'संकोच' अर्थ स्पष्ट छ : 'सेवकने सहाय करीने, अविरल वाणी आपजो, जेथी जलदी सिद्धि मळे. जरा पण संकोच न करशो.'
(१८) हरिख्या.(१६४८)मां - ___ तेडी लावो कन्याने ए वर सहित, भगवान !
साथे जनेता तेडजो, तमे रखे करता काण. (११, ७) . एक ब्राह्मणनी कन्यानो विवाह करावी आपवानुं हरिश्चन्द्र माथे ले छे त्यारे ए
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