Book Title: Madhyakalin Gujarati Shabdakosha
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 700
________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ६१४ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश भायाणी, १९५३)मां - आएं समापुं फिर कवण खत्तु, घाइज्जइ नासतो वि सत्तु जं फिट्टइ जम्म-सयाहं काणि किर जाम पधावइ सूल-पाणि. (१०, १२, १-२) रावण साथेना युद्धमा हारीने नासी जता वैश्रवणने मारी नाखवा माटे कुंभकर्ण तेनी पाछळ जवा करे छे त्यारे बोलायेली आ उक्ति छे. एनो अनुवाद आ प्रमाणे थाय : "आनी साथे वळी क्षात्रधर्म (पाळवानी) ते वात होय ? (आवा) नासता शत्रुने पण हणवानो ज होय, जेथी सेंकडो जन्मनी 'काणि' फीटे - एयू कहेतो ज्यां ते हाथमां शूल पकडीने दोडवा जाय छे, त्यां....." संपादके आ अने पछीना उदाहरणने अनुलक्षीने 'वैर ?' एम अर्थ नोंध्यो छे. वस्तुतः आ संदर्भमां अहीं 'सेंकडो जन्मनुं वैर', 'सेंकडो जन्मनो झघडो', 'सेंकडो जन्मथी मने लागेलुं कलंक' एम 'वैर', 'झघडो', 'कलंक' त्रणे अर्थो बेसे छे. 'कलंक' अर्थ पछीथी राजस्थानी-गुजरातीमां विकसेला 'लज्जा'ना अर्थ साथे संबंध व्यक्त करे, परंतु अपभ्रंशनी 'काणि'ना प्रयोगनी परंपरा 'झघडा'ना अर्थने वधारे टेको आपे छे, जे आपणे हवे पछी जोईशुं. 'वैर'नो अर्थ 'झघडा' साथे संकळायेलो ज गणाय. देशी शब्दसंग्रहे 'काणि' शब्दनो 'वैर' एवो अर्थ नोंध्यो छे ते आवा कोईक प्रयोगने अनुलक्षीने हशे. (२) ए ज कृतिमां - सहुं सालएहिं किर कवण काणि, जई घाइय तो तुम्हहुं जि हाणि. (१३, ११, ९) मय राक्षस रावणने एना साळाओ खरदूषणने न मारवानी सलाह आपे छे ते प्रसंगनी आ उक्ति छे. एनो अनुवाद आम थाय : “साळानी साथे ते 'काणि' करवानी होय ? तेने मार्यो होय तो तेथी तने ज हानि थाय." अहीं 'वैर' के 'झघडो' ए अर्थ बेसी शकशे, पण 'कलंक' ए अर्थ बेसी नहीं शके. (३) साधारण कविकृत 'विलासवइ कहा' (१०३७) (संपा. र. म. शाह, १९७७)मां - - एहु चोरु समप्पि, म करहि काणि. (१, १०, ७) नायक पोताना आश्रये आवनार चोरने रक्षण आपे छे त्यारे एने पकडवा मागनार नायकने आ शब्दो कहे छे - "आ चोर सोंपी दे. 'काणि' न कर." अहीं स्पष्ट रीते -टाना Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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