Book Title: Madhyakalin Gujarati Shabdakosha
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश
५८३
अर्थने प्रस्तुत वर्णनमां केवी रीते स्थान आपवुं ते कोयडो रहे छे.
वस्तुतः आ कालिंदीने कांठडे कृष्णे गोपीनी करेली छेडछाडनुं, शृंगारक्रीडानुं वर्णन छे. तेथी 'अधरास' ए 'अधरासव' ने स्थाने आवेलो शब्द होवानो संभव छे एवं डॉ. भायाणीए मने सूचन कर्यं ते वाजबी लागे छे. 'ओलववुं' शब्द मध्यकाळमां 'छुपावुं, संताडवुं' एवा अर्थमां जोवा मळे छे ते उपरांत 'ओळववुं' शब्द 'पचावी पाडवुं, लई लेवुं, चोरी लेवुं' एवा अर्थमां अत्यारे पण प्रचलित छे. सं. 'अपलप्' एटले 'छुपाववुं', मांथी 'चोरीछूपीथी लई लेवुं' एवो अर्थ आवी शके. आ रीते 'ओलवियो अधरास 'नो अर्थ आम थई शके : अधरासव एटले के अधररस चोरी लीधो / बळात्कारे लीधो / झुंटवी लीधो.
'ऊलववुं' / 'ओलववुं' शब्द वधारे तो 'छुपाववुं, संताडवं'ना अर्थमां मध्यकाळमां वपरायो छे. जेमके, अंबरा. मां
(१) सइयाणी आगलि तूं पेट सिउ उलवइ. (२) अलूक परइ ऊलवइ आप.
संपादके ‘संताडे, छुपावे' एवो अर्थ आप्यो छे ते बराबर बेसी जाय छे : (१) सुयाणी आगळ तुं पेट शुं छुपावे छे ? (२) घूवडनी पेटे पोतानी जातने संताडे छे. सिंहा (म).मां
देवदत्त मनि सुप्रमाण, मनशुधिइ करइ वखाण.
कइ कारिमु परीक्षा भणी, राजकुयर उलवीउ मति घणी.
संपादके 'छुपाववुं, संताडवं' एवो अर्थ आप्यो छे ते योग्य छे : "देवदत्ते मनमां विचार्य के राजा खरा मनथी वखाण करे छे के खोटेखोटा ? एनी परीक्षा करवाए घणी बुद्धिथी राजकुंवरने संताडी दीधो. "
वाग्भबा.मां
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थोडी शब्दार्थचर्चा
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जिहां सादृश्य शरखाइतु अपह्नव उलविवापूर्वक इंसिउं बोलीइ.
संपादक भोगीलाल सांडेसराए 'अपह्नुतिपूर्वक, ढांकवा साथे' एवो अर्थ आप्यो छे ते मूळमां ज छे एम कहेवाय : "ज्यां सादृश्यने कारणे अपह्नवपूर्वक एटले ढांकीने आम कहेवामां आवे . "
गुर्जरा. - अंतर्गत शालिसूरिकृत 'विराटपर्व' मां
मरण नई भइ गिउ मझ भोलवी,
किस्यूं किह्यां उरतु हिव ओलवी.
संपादकोए 'assuage, cool down' (शांत करवुं, ठारवुं) एवो अर्थ आप्यो छे पण आ भ्रष्ट पाठनुं परिणाम छे. संपादकोने पाठ 'उर' मळ्यो छे तेनुं तेमणे 'उरतु'
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