Book Title: Madhyakalin Gujarati Shabdakosha
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 697
________________ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश ६११ थोडी शब्दार्थचर्चा नाककान कापीने. (वचन) पाळवं __ 'वचन' जेवा शब्दना संदर्भे 'उसींकल' शब्द आवे त्यारे 'वचनना भारमांथी मुक्त थर्बु' एवो अर्थ थाय. एमांथी 'वचननी पूर्ति करवी, वचन पाळवू' एवा सामान्य अर्थ पण विकसी शके. मध्यकाळमां एवो प्रयोग पण सांपडे छे जेमां वचननी पूर्ति करीने एमांथी छूटी जवानुं अभिप्रेत नथी, वचन- अनुवर्तन - अनुपालन करवानो अर्थ छे. एटलेके (वचन) पाळवुनी व्यापक अर्थछाया आपणे लेवानी रहे छे. अगाउना (२५)मा उदाहरणमा पुछे उशंकल थावो एटले "पूछ्युं छे तो ए मुजब वर्तो - करो" एवो अर्थ अभिप्रेत होवानी पण शक्यता गणाय. 'वचन' जेवा शब्दो साथे आवता 'उसींकल' शब्दना अन्य प्रयोगो हवे आपणे जोईए. (३१) पद्मनाभकृत 'कान्हडदे-प्रबंध' (१४५६) (भा.३-४, संपा. कांतिलाल ब. व्यास, १९७७)मां विष्णुनो अवतार लेखायेल कान्हडदे कहे छे - राउल भणइ, "व्यास कुण साखि, ताहरउ धूम न जोसिउं आंखि, थ्या उसंकल अवसर भलइ, दीधउं वचन जनमि आगिलइ." (४,२९१) (राजा कहे छे - व्यास, कोण साक्षी बनशे? तुं जौहरनो जे अग्नि पेटावीश तेनो धुमाडो हुं मारी आंखथी जोईश नहीं. आगला जन्ममां अमे जे वचन आप्युं हतुं तेना भारमाथी आ शुभ अवसरे अमे मुक्त थया / ते वचन आ शुभ अवसरे अमे पाळ्यु.) आ पछी अल्खानना स्कंध भांगीने रुद्रने छोडाव्यानो तथा वालिवध ने शिशुपालवधनो कान्हडदेने मुखे उल्लेख थयो छे. ते पछी देव कलियुगमां अवतार लई, पोतानुं वचन पाळी स्वस्थाने गया एम वर्णन छे. संपादके संबंधित पंक्तिनो "अमे आवा (धमीयुद्धमा वीरगति पामवानो मंगल अवसर मळतां (ईश्वरना) बहु ओशिंगण थया छीए" एवो अनुवाद कर्यो छे. एटलेके 'उसंकल' शब्दने एमणे 'उपकृत'ना अर्थमां लीधो छे. भगवद्गोमंडले पण आ पंक्तिने संदर्भे 'आभारी, उपकृत' अर्थ आप्यो छे, जे योग्य नथी. (३२) शृंगाम.मां युद्ध माटे प्रयाण करती वखते अजितसेन पोतानी पत्नी शीलवतीने कहे छे - वचन उसीकल आपणा, हवइ म विसारसि चित्ति, दिन दिन अधिक वधारयो, वहाली आपणी प्रीति रे (८६६) (पोतानां वचन- पालन करजे अने हवे मने चित्तमांथी विसारती नहीं.) संपादके 'ऋणमुक्त' अर्थ आप्यो छे, परंतु 'मुक्ति'नी वात अहीं संगत बने तेम Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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