Book Title: Madhyakalin Gujarati Shabdakosha
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 688
________________ थोडी शब्दार्थचर्चा ६०२ मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश (कदाचित आकाशमंडळ डोले...) संपादके पण 'गगनमंडळ' ए अर्थ ज आप्यो छे. प्रेमाका.मां - ___ मा भर रे ओहरु डगां, तूझ-पे त्रूटी पडशे खगां. (आगळ डगलां न भरतो, नहीं तो तारा पर आकाश तूटी पडशे.) संपादके आपेलो 'पक्षीओ' अर्थ देखीती रीते ज खोटो छे. संतो, मन रे मारीने मज्जन करे, परम ज्योतमां भळे, खगाकार ए तो थई रहे... (मनने मारीने ब्रह्मभावमां डूबे ने परम ज्योतमां लीन थाय ते आकाशवत् । शून्यवत् थईने रहे....) संपादके 'पंखीना जेवू, आकाशमां (ब्रह्ममा) मुक्त रीते विहरनार' एवो अर्थ आप्यो छे ते बराबर नथी. ४२. खराप जोडणीकोश 'खराब'ना 'नठारूं, अनीतिमान, भ्रष्ट' एवा अर्थो नोंधे छे अने ए ज प्रचलित अर्थो छे. पण अरबी 'खराब' शब्द 'विनाश, बरबादी' एवो अर्थ पण धरावे छे अने मध्यकाळमां ए अर्थमां आ शब्द वपरायेलो मळे छे. जेमके, अखाका.मां -- __ मध्य अहंता करे खराप. 'खराप' अहीं 'खराब'ने स्थाने छे अने संपादके ए पर्याय मूकीने ज काम चलाव्यु छे. पण जोई शकाय छे के 'खराब'नो चालु अर्थ अहीं कथयित्वने बराबर प्रगट करतो नथी, “मध्ये अहंता विनाश / बरबादी करे छे" एवो अर्थ लेवाथी ज कथयित्व बराबर ऊघडे छे. ४३. गान, किण गानइ 'गान' शब्द 'गीत, गायन' एवा अर्थमां जाणीतो छे. पण मध्यकाळमां ए ‘गणना, विसात' एवा अर्थमां पण मळे छे, जेमके, आरारा.मां - कहइ ब्राह्मण, "मुझ प्राण, तेह पणि रायना जाण, तु कन्या किण गानइ...." (ब्राह्मण कहे छे - मारा प्राण पण राजाना छे, तो मारी कन्या शी विसातमा ?) संपादके 'कई विसातमां' एवो ज अर्थ आप्यो छे. जिनरा.मां - इम विचार करता मन माहे लाखे गाने लोको रे... Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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