Book Title: Lokprakash Part 01
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ प्रकाशकीय सत् साहित्य का सृजन उसका संकलन एवं प्रकाशन जीवन विकास का उच्चतम सोपान है इस श्रेष्ठतम लक्ष्य को पुरस्सर कर हमारे संस्थान निर्ग्रन्थ साहित्य प्रकाशन द्वारा श्रुत यज्ञ में एक और पुष्पांजलि समर्पित है स्वनाम धन्य महोपाध्याय श्री विनय विजय जी महाराज ने अनेक ग्रन्थों में श्रेष्ठ, द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव से युक्त चार विभागों वाले श्री लोक प्रकाश नाम के ग्रन्थ की रचना की है। __ ग्रन्थ शिरोमणि लोक प्रकाश में जैन दर्शन के प्रायः सभी विषयों का सुन्दर अंश समन्वित है । वर्तमान में जो संस्करण प्रकाशित हुए है, उनमें विवेच्य विषय द्रव्य-क्षेत्रकाल और भाव को पांच भागों में समाहित किया गया है। इस महानतम ग्रन्थ के प्रणयन में उपाध्याय श्री विनय विजय जी गणि वर्य ने समग्र लोक-अलोक व्यवस्था, उसमें विराजित जीव-अजीव के ज्ञान का कैसा वर्णन किया है? यह तो इस महान ग्रन्थ के पठन-पाठन एवं श्रवण से ही जाना जा सकता है। लगभग ११ हजार श्लोक प्रमाण इस महाकाय ग्रन्थ में द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव में जो-जो विषय आये है, उनके सम्बंध में पूर्ववर्ती आचार्यों, जैन दर्शन के ग्रन्थों के, जो भी मतान्तर आये हैं, सभी को स्थान दिया गया है। यही कारण है कि अपने कथन की पुष्टि में ग्रन्थकार ने लगभग १४०० साक्षी पाठों एवं ७०० अन्य प्रामाणिक ग्रन्थों के अंश प्रस्तुत किये है । अनेक आगमों के प्रकरण ग्रन्थों, प्रकीर्णक ग्रन्थों के पाठों की साक्षी रूप "द्रव्य लोक प्रकाश" में ४०२, क्षेत्र लोक प्रकाश' में ५०७, 'काल लोक प्रकाश' में ३७६ तथा 'भाव लोक प्रकाश' में २३ साक्षी पाठ प्रस्तुत किये है। ... . अभी तक जैन दर्शन के दिग्दर्शक इस ग्रन्थ राज के, संस्कृत और गुजराती भाषा में अनुवादित संस्करण ही देखने में आये हैं । प्रथम भाग द्रव्य लोक प्रकाश, सर्ग (१-११) श्लोक प्रमाण ३२६७ का सरल हिन्दी भाषानुवाद प्रकाशित करते हुए अत्यन्त हर्ष की अनुभूति हो रही है। परम पूज्य आचार्य "आत्म-वल्लभ-ललित-पूर्णानंद" की शिष्य परम्परा एवं पट्ट परम्परागत अनेक तीर्थोद्धारक, आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय प्रकाश चन्द्र सूरीश्वर जी महाराज स० के शिष्य रत्न, शास्त्रों के सदव्याख्याता आचार्य प्रवर

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 634