Book Title: Kulingivadanodgar Mimansa Part 01 Author(s): Sagaranandvijay Publisher: K R Oswal View full book textPage 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूचना शान्ति, प्रेम और योग्यता का भंग होता है । इसलिये हरएक व्यक्ति को अपने लेखों, वचनों और व्यवहारों में हर समय सभ्यता से काम लेना चाहिये । ऐसा न करने से प्रतिवादियों को वैसी ही असभ्यता का सहारा लेने का मौका मिलता है, जिसका आखिरी नतीजा द्वेष-निन्दा के सिवाय और कुछ नहीं आता।" नूतन पुस्तकों की सत्यता अथवा असत्यता पर अपने हार्दिक विचार प्रकट करना यह हरएक विद्वान् का खास कर्त्तव्य है, इमलिये “ कुलिङ्गिवदनोद्वार-मीमांसा" पहिले भाग के विषय में भी विद्वान् वर्ग अपने २ विचार अवश्य प्रगट करेंगे. परन्तु उन को यही सूचित किया जाता है कि प्रस्तुत पुस्तक के विषय में जो कुछ लिखना हो वह सभ्यता के विरुद्ध नहीं होना चाहिये। अगर कोई अन्धश्रद्धा के कारण सभ्यता के तरफ ख्याल न करते हुए असभ्यता से पेश आवेगा तो लाचार होकर के मेरी लेग्वनो भी उसी प्रकार के मार्ग का अनुकरण किये विना न रहेगी। अतएव शान्ति और सभ्यता से सब कोई अपने २ विचार प्रकट करें, जिससे कि शान्ति का क्षेत्र संकुचित नहीं होवे । मुनि-सागरानन्दविजय. For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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