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विशाल ग्रन्थ तैयार किया। वे इस क्षेत्र के राष्ट्रीय स्तर के विद्वान हैं। इतिहास के बारे में उनका ज्ञान काफी विस्तृत है।
महोपाध्याय विनयसागर जी ने बचपन से ही अपना जीवन जैन धर्म के शास्त्र, दर्शन, इतिहास एवं परंपरागत अध्ययन में लगाया है। वे इतिहासवेत्ता भी हैं, साथ ही साथ संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं पर भी उनकी गहरी पकड़ है। उनके द्वारा लिखित सम्पादित कई ग्रन्थ एवं शास्त्र आज देश-विदेश में शोधकर्ताओं द्वारा उपयोग में लिये जा रहे हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ में विनयसागर जी ने खरतरगच्छ के गौरवमय इतिहास को 'ऐतिहासिक संदर्भो एवं प्रमाणों के साथ सीधी-सरल भाषा में प्रस्तुत किया है। निश्चय ही, यह ग्रन्थ खरतरगच्छ परम्परावालों के लिए उपयोगी है ही, साथ ही अन्य परम्परावालों के लिए भी इसकी पूरी उपादेयता है। ग्रन्थ का लेखन स्वयं एक इतिहास है और इतिहास प्रेमी लोगों के लिए 'मील का पत्थर'। इसी के जरिये हम अपने अतीत के गौरव को निहार सकते हैं। खरतरगच्छ ने अतीत में जिस गौरव को अर्जित किया, यदि यह फिर से दोहराया जा सके, तो खरतरगच्छ का भविष्य भी उतना ही गौरवपूर्ण होगा, जितना कि कभी इसके बीते दिनों में था। हमारा अतीत क्या था, यह जानने के लिए ही प्रस्तुत ग्रन्थ की उपयोगिता है। निश्चय ही प्रस्तुत ग्रन्थ हमारे लिए 'प्रकाश-स्तम्भ' का काम करेगा, जिसकी रोशनी में हम नई सार्थक दिशाओं की तलाश कर सकते हैं।
आशा है, विनयसागर जी के अन्य ग्रन्थों की तरह यह भी विद्वद् समाज में समादृत होगा। सर्वजनहिताय लिखे गये इस ग्रन्थ लेखन की सार्थकता इसी में है कि हम इसका अधिकाधिक प्रसार और उपयोग करें और अपने पुस्तकालय में इसकी प्रति सहेज कर रखें। साधुवाद एवं शुभकामना के साथ अमृत प्रेम।
-श्री चन्द्रप्रभ संबोधि-धाम, कालयाना रोड़, जोधपुर (राज.)
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भूमिका
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