Book Title: Kavyamala Part 7
Author(s): Durgaprasad, Vasudev L Shastri
Publisher: Nirnaysagar Yantralaya Mumbai

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Page 14
________________ भक्तामरस्तोत्रम् । वलगत्तुरङ्गगजगर्जितभीमनाद__ माजौ बलं बलवतामपि भूपतीनाम् । उद्यदिवाकरमयूखशिखापविद्धं त्वत्कीर्तनात्तम इवाशु भिदामुपैति ॥ ४२ ॥ कुन्तामभिन्नगजशोणितवारिवाह वेगावतारतरणातुरयोधभीमे । युद्धे जयं विजितदुर्जयजेयपक्षा स्त्वत्पादपङ्कजवनाश्रयिणो लभन्ते ॥ ४३ ॥ अम्भोनिधौ क्षुभितभीषणनकचक्र पाठीनपीठभयदोल्बणवाडवामौ । रङ्गत्तरङ्गशिखरस्थितयानपात्रा स्वासं विहाय भवतः स्मरणाद्रजन्ति ॥ ४४ ॥ उद्भूतमीषणजलोदरभारभुमाः शोच्यां दशामुपगताश्च्युतजीविताशाः। त्वत्पादपङ्कजरजोभृतदिग्धदेहा __ मां भवन्ति मकरध्वजतुल्यरूपाः ॥ ४५ ॥ आपादकण्ठमुरुशृङ्खलवेष्टिताङ्गा गाढं बृहन्निगडकोटिनिघृष्टजङ्घाः । त्वन्नाममन्त्रमनिशं मनुजाः स्मरन्तः सद्यः वयं विगतबन्धभया भवन्ति ॥ ४६॥ मत्तद्विपेन्द्रमृगराजदवानलाहि सङ्ग्रामवारिधिमहोदरबन्धनोत्थम् । तस्याशु नाशमुपयाति भयं भियेव यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते ॥ ४७ ॥ १. वारिवाहा जलप्रवाहाः. २, 'चके' इति पाठः. ३. 'भमाः', 'ममाः' इति च पाठा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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