Book Title: Kavyamala Part 7
Author(s): Durgaprasad, Vasudev L Shastri
Publisher: Nirnaysagar Yantralaya Mumbai
View full book text
________________
काव्यमाला।
उन्निद्रहेमनवपङ्कजपुञ्जकान्ती __पर्युल्लसन्नखमयूखशिखाभिरामौ । पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र धत्तः
पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति ॥ ३६॥ इत्थं यथा तव विभूतिरभूजिनेन्द्र __धर्मोपदेशनविधौ न तथा परस्य । यादृक्प्रभा दिनकृतः प्रहतान्धकारा ___ तादृक्कुतो ग्रहगणस्य विकासिनोऽपि ॥ ३७ ॥ श्योतन्मदाविलविलोलकपोलमूल
मत्तभ्रमद्भमरनादविवृद्धकोपम् । ऐरावताभमिभमुद्धतमापतन्तं
दृष्ट्वा भयं भवति नो भवदाश्रितानाम् ॥ ३८ ॥ भिन्नेभकुम्भगलदुज्वलशोणिताक्त
मुक्ताफलप्रकरभूषितभूमिभागः ।। बद्धक्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपि
नाकामति क्रमयुगाचलसंश्रितं ते ॥ ३९ ॥ कल्पान्तकालपवनोद्धतवह्निकल्पं
दावानलं ज्वलितमुज्ज्वलमुत्स्फुलिङ्गम् । विश्वं जिघत्सुमिव संमुखमापतन्तं
त्वन्नामकीर्तनजलं शमयत्यशेषम् ॥ ४० ॥ रक्तक्षणं समदकोकिलकण्ठनीलं
क्रोधोद्धतं फणिनमुत्फणमापतन्तम् । आक्रामति क्रमयुगेण निरस्तशङ्कस्त्वन्नामनागदमनी हृदि यस्य पुंसः ।। ४१ ॥
१. औषधिविशेषः.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 166