Book Title: Kalyan Kalika Part 1
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 20
________________ प्रस्तावना] प्रथम खंड बुक अने बीजो, त्रीजो खंड भेगा पोथी रूपे छपाववानुं निश्चित करायु. मुद्रण कामनी व्यवस्थामुद्रण कार्य जल्दी थइने पुस्तक वहेलुं वहार पडे एवी अमारी इच्छा होय ए तो स्वाभाविक गणाय, पण द्रव्य सहायकोनी उतावल अमारा करतांये अधिक हती, पण आटलं दलदार पुस्तक भावनगर के अमदावाद प्रेसमां छपाय अने अमे मारवाडमां मुफ मंगावीने सुधारीये तो पुस्तक क्यारे छपाइने बहार पडे ? लेखक अने आर्थिक सहायको केटली धीरज राखे ? अने एकला प्रेसवाला अने मुफरीडर पंडितने भरोसे पण काम केम छोडाय १, भावनगर वा अमदावादमां एवा कोइ विद्वान् साधुनुं चोमासु होय के जे आ काम करवामां योग्य अंने करवानी भावनावाला होय तो पुस्तक अमदावाद छपाव, ए विचारणा चालती हती एटलामा तपस्वी पं० श्रीकान्तिविजयजी गणिनो पत्र मल्यो, तेमणे जणाव्यु के " अम्हारं चोमासुं बीजे नक्की थइ गयुं हतुं पण शारीरिक कारणे डाक्टरनी सलाहथी अमदावाद आव्या छीये." अमने प्रसन्नता थइ अने पूछयु के " जो शारीरिक अडचण न होय अने कलिकानुं मुद्रण कार्य संभाली शकाय तेम होय तो ए कार्य हुं तमने सोंपवा इच्छु छु" अमारा आ पत्रनो उत्तर पं० कान्तिविजयजीए स्वीकृतिना रूपमा आप्यो एटले प्रथम खंडना केटलाक परिच्छेदो तेमने मोकली आप्या अने आर्थिक सहायकोने सूचना पहोचतां खर्च माटे रकम पण अमदावाद श्रीविद्याशालानी पेढीमां पहोंची गइ. कार्य चालु थयुं अने गत वर्षना कार्तिक उतरतां १० फर्मा छपाया, पण एटलामां पं० श्रीकांतिविजयजीने विहार करवानो प्रसंग आव्यो एटले अमारी सूचना प्रमाणे संपादननु कार्य तपस्वीपवर मुनि श्रीभद्रंकरविजयजीने सोंपायुं अने ते पछी आनुं बधुं ज संपादकीय कार्य उक्त मुनिराजे ज कयु छे. आ. बंने विद्वान् मुनिवरोए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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