Book Title: Kalp Samarthanam
Author(s): Purvatanacharya
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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कल्प
समर्थन
॥१९॥
शक्रोऽथ जिनमानीय, विमुच्याम्बान्तिके ततः। संजहार प्रतिबिम्बावखापिन्यो खशक्तितः॥ ५६ ।। कुण्डलक्षौमयुग्मं चोच्छीर्षे |
| जन्ममुक्त्वा हरिय॑धात् । श्रीदामरबदामात्यमुल्लोचे वर्णकन्दुकम् ।।५७।। द्वात्रिंशद्रनरैरूप्यकोटिवृष्टिं विरच्य सः। बाढमाघोषयामासेति महोत्सवः सुरैरामियोगिकैः ।।५८॥ स्वामिनःस्वामिमातुश्च, करिष्यत्यशुभं मनः । सप्तधाऽर्यमञ्जरीव, शिरस्तस्य स्फुटिष्यति ।।५९॥ चातुर्निकायिका देवा, एवं जन्मोत्सवं प्रभोः । नन्दीश्वरेऽष्टाहिकांच, कृत्वा जग्मुर्यथाऽऽगतम् ॥५०॥ इति श्रीजिनजन्माभिषेकः।
(मूत्र१०६) नामकरणं 'देवेहिं से नामं कर्य'ति अह वड्ढह सो भयवं दिअलोअचुओ अणोवमसिरीओ। दासीदासपरिखुडो परिकिनो पीढमद्देहिं ॥१॥असिअसिरओ सुनयणो बिंबुट्टोधवलदंतपंतीओ। वरपउमगन्भगोरो फुल्लुप्पलगंधनीसासो॥२॥ जाईसरो अभयवं अपरिवडिएहिं तीहिं नाणेहिं । कंतीहि अ बुद्धीहि अ अब्भहिओ तेहिं मणुएहिं ॥३॥ अह ऊणअट्ठवासो भयवं कीलइ कुमारएहिं समं । आमलिआखिल्लेणं लोअपसिद्धेण पुरवाहिं ॥४॥ तत्थ य खिड़े रुक्खं आरुहिअवं तु केल्लयनरेहिं । इत्थंतरे | अ सको सोहम्मसहाइ उवविट्ठो ॥५॥ संतगुणुकित्तणयं करेइ वीरस्स अमरमज्झम्मि । धीरत्तगुणविआरे परगुणगहणम्मि तल्लिच्छो ॥६॥ बालो अबालभावो अबालपरकमो महावीरो । न हुसको मेसेउ देवेहिं सईदएहिंपि॥७॥ तं वयणं सोऊण मिच्छद्दिट्टी।। अह सुरो एगो । चिन्तइ माणुसमित्तं तत्थवि सिसुभावमावन्नं ॥८॥ देवेहिंवि नो तीरइ मेसेउं सद्दहामि नो एयं । ता गंतुं भीसेमी || | इय चिंतिय आगओ तत्थ ।।९।। कीलइ जत्थ जिणिंदो कीलणरुक्खं च वेढइ समता। कजलवनं काउं फणिरूवं दीहरं भीमं ॥१०॥ तं दवण पलाणा भयभीया कीलमाणया कुमरा । सवेवि ठिओ वीरो फणिणावि कओ फणाडोवो॥११।। सो चित्तूण करेणं उल्लालेऊण घल्लिओ दूरं । भयरहिएण जिणेणं लहु मिलिया तो पुणो डिंभा ॥१२॥ चिंतइ सुरोन भीओ इत्थं ता अन्नहा पुणो भेसे ।
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