Book Title: Kalp Samarthanam
Author(s): Purvatanacharya
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandie कल्प श्रीवीर समर्थन ॥२१॥ HOM IAN लेखशालाकरणम्॥ (सू०१०७) उम्मुकचालभावो कमेण अह जुबणं समणुपत्तो। भोगसमत्थं नाउं अम्मापिअरो अवीरस्स॥१॥ |तिहिरिक्खम्मि पसत्थे महंतसामंतकुलपस्याए ।कारिति पाणिगहणं जसोअवररायकमाए ॥२॥ पंचविहे माणुस्से भीए अत्तूण || सहजसोआए। तेअसिरिं व सुरूर्व जणयह पिअदेसणं धनं॥३॥ परिणीया समयम्मि अजमालिणा पवरनरबहसुएणं । बीर-11 स्सऽम्मापियरो दिवं गया इत्थ समयम्मि ॥४॥वीरस्स जिट्ठभाया अहिसित्तो नंदिवद्धणो कुमरो। वररायलक्खणधरो रले सामंत-IN | मंतीहि ।।५।। वीरोऽविनंदिवद्धणपमुहं आपुच्छए सयणवगं । पहजागहणत्थं पडिपुत्रमिग्महत्तेणं ॥६॥ तो भणइ जिट्ठभाया मम जणणीजणयविरहदहियस्स। तुह विरहग्गी संदर! खयंमि खारोवमो होड ७॥ एवं मणिए जिद्रुण भाउणा परमपणयकलिएणं । तस्सेव बोहणत्थं भणइ जिणो भवविरत्तमणो॥८॥ नणु पिच्छणए पिच्छणयजणाण जह दीहरो न संजोगो। तह बंधुसमाजोगो अथिरुचि होइ संसारे॥९॥ पिअमाइभाइभइणीभजापुत्तत्तणेण सोऽवि । जीवा जाया बहुसो जीवस्स उ एगमेगस्स ॥१०॥ ता कमि कमि कीरइ पडिबंधो? कम्मि कम्मि वा ने। इअ नाऊण महायस! मा किजउ सोगसंतावो ॥११॥ नंदि०-अहमवि । जाणामि इमं किंतु ममं बंधणाई तुईति । जीविअभूएण तए अन्ज विमुक्कस्स सयराहं ॥१२॥ता मह उवरोहेणं वासाई दुनि चिट्ठसु गिहम्मि। उत्तमपुरिसा दट्टुं दुहियं करुणायरा हुँति ॥१३॥ वीर०-एवं होउ नरेसर ! किंतु ममट्ठा न कोई आरंभो। कायबोऽहं फामुअभोयणपाणेण चिहिस्सं ॥१४॥ एवं चित्र पडिवने चिट्ठइ सुहझाणभावणो वीरो । विसयमुहनिप्पिवासो दयावरो सबजीवेमु ॥१५॥ एवं प्रतिपने ममधिकं वर्षद्वयं प्रासुकैषणीयाहारः शीतोदकमप्यपिवन भगवान् तस्थौ, न च प्रासुकेनापि जलेन सर्वस्नानं कृतवान् , केवलं लोकस्थित्या हस्तपादमुखमात्रप्रक्षालनं प्रासुकेन जलेन चकार, निष्क्रमणमहे तु सचित्तोदकेन स्नातवान् , ब्रह्मचर्य ॥२१॥ For Private And Personal use only

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