Book Title: Kalp Samarthanam
Author(s): Purvatanacharya
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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कल्पसमर्थन ॥४४॥
विश्वे, भ्रान्त्वा क्षिती येन शरत्सहस्रम् । यदर्जितं केवलरत्नमम्यं, स्नेहात्तदेवार्यत मातुराशु ॥४॥ मरुदेवा समा नाम्बा, याऽगात
श्रीऋषमपूर्व किलेक्षितुं । मुक्तिकन्यां तनूजार्थ, शैवं मार्ग खिलं चिरात् ।।९।। भरतः स्वामिनं ववन्दे, पंच य पुत्तसयाई भरहस्स य सत्त
निर्वाणं
गणघराच नत्तुअ सयाई । सयराई पबहआ तम्मि कुमारा समोसरणे ॥१०॥ द्वात्रिंशत्सहस्राणि, कलौ लक्षचतुष्टयम् । वर्षाणां तच त्रेतादी, |क्रमाद्वित्रिचतुर्गुणम् ॥१॥ तेयालीसं लक्खा वीससहस्सा हवंति वरिसाणं । चउण्ड जुगाणं माणं चतुकडीए अ माणमिणं ।। २।। एगा कोडी तेसट्टि लक्ख तित्तीस सहस्स तिमि सया। तित्तीसा य तिभागो चउकडी इकप्रचम्मि ॥३॥ एगा कोडाकोडी सगतीसा लक्ख हुंति कोडीणं । वीससहस्सा कोडी चउकडी रिसहसवाऊ ॥४॥ अउणढि सयसहस्सा सत्तावीसं भवे सहस्साई । चचा कोडाकोडी वासाणं उसमजिणमाउं ।।५।। अतः ५९२७०४० शू०१२, श्रीआदिनाथवृत्तं ।।
अथ स्थविरावल्यां-पढमित्थ इंदभूई वीए पुण होइ अग्गिभृइति । तइए उ वाउभूई तओ विअत्ते सुहम्मे अ॥१॥ मंडिय मोरियपुत्ते अकंपिए चेव अयलमाइति । मेयजे य पभासे गणहरा हुंति वीरस्स ॥ २॥ पंचण्डं पंच सया अधुदुसया |य हति दनि गणा । दण्डं च जुअलयाणं तिसओ तिसओ हवह गच्छो॥॥ स य माहणा जच्चा सवे अज्झावया विऊ18
सवे दुवालसंगीआ, सचे चउदसपुविणो ॥ ४ ॥ परिनिळ्या गणहरा जीवंते नायए नव जणा उ। इंदभूई सुहम्मो अरायगिहे निन्बुए वीरे ।। ५। मासं पाओवगया सबपि य सबलद्धिसंपन्ना। बरिसहसंघयणा समचउरंसा प संठाणे ॥ ६॥ श्रीवीरपट्टे श्रीसुधर्मम्वामी पञ्चमगणधरो बभूव, तत्स्वरूपं चेदं संक्षेपण-कुल्लागसन्निवेशे धम्मिल्लविप्रस्य भद्दिला भार्या, | तत्कुक्षिकन्दरासमुद्भूतः चतुर्दशविद्यानिधानं ५० वर्षान्ते दीक्षा ३० वर्षाणि यावत श्रीवीरचरणकमलपरिचर्या श्रीवीरमोक्षाद् ॥ ४४ ।।
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